भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पिछले दिनों बड़ी ही धूमधाम से पावर परचेस एग्रीमेंट किया था। ऐसा जताया जा रहा था कि यह मप्र के फायदे के लिए उठाया गया कदम है परंतु अब यह बड़े घाटे का सौदा हो गया है। जिन कंपनियों से एग्रीमेंट किया गया उन्होंने अभी तक मप्र को 1 यूनिट बिजली नहीं दी है लेकिन 1.75 लाख के कर्ज में डूबी मप्र सरकार प्रतिमाह 2200 करोड़ रुपए का भुगतान कर रही है। ऊर्जा मंत्री पारस जैन का कहना है कि यह हमारी मजबूरी है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि बिजली खरीदी का एग्रीमेंट उस समय किया गया जबकि मप्र के पास जरूरत से ज्यादा बिजली मौजूद है। वो दिल्ली मेट्रो, यूपी और छत्तीसगढ़ बिजली सप्लाई कर रहा है।
ऊर्जा मंत्री पारस जैन ने जबलपुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए माना कि पावर परचेस एग्रीमेंट के तहत बिजली कंपनियों को बिना बिजली लिए हर महीने 2200 करोड़ का भुगतान करना मजबूरी है। इसे कैंसल नहीं किया जा सकता। जब तक प्रदेश में नई इंडस्ट्री नहीं आएंगी, यह घाटा उठाना ही होगा। नई इंडस्ट्री कब तक आएंगी सरकार के पास इसकी कोई डेड लाइन नहीं है।
क्या कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया एग्रीमेंट
सवाल यह है कि जब मप्र का सरकारी खजाना खाली है। प्रदेश पर 1.75 लाख रुपए का कर्जा है। स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि यह कर्जा अभी और बढ़ने वाला है। सरकार आम नागरिकों पर पहले से ही बेहिसाब टैक्स थोप चुकी है। सरकार के पास आय का कोई मजबूत साधन नहीं है। ऐसे में क्या जरूरत थी कि इस तरह का एग्रीमेंट किया जाए। कहीं ऐसा तो नहीं कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए यह साजिश रची गई हो। संदेह यह भी किया जा सकता है कि इस एग्रीमेंट के बदले कोई मोटा फायदा मिला हो।