हरिहर निवास शर्मा। आज समाज में कौन अन्याय और अत्याचारों से पीड़ित नहीं है। उनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं जो बागी हो जाते हैं। कानून हाथ में लेते हैं। अधर्म का मार्ग अपना लेते हैं। सरकार ने वेतन कम दिया तो घूसखोर बन गए। बॉस अच्छा व्यवहार नहीं करता तो लापरवाही करने लगे। काम बिगाड़ने लगे। पुलिस ने एफआईआर नहीं लिखी तो खुद बदला ले लिया। राजनीति में ऊंचे स्तर तक जाने के लिए पैसा खर्च किया और जब बड़ा पद मिला तो जो खर्च किया था उसका कई गुना वापस निकालने में जुट गए। कुछ इससे भी आगे निकलते हैं। अपराधी बन जाते हैं। आतंकवादी बन जाते हैं। हिंसा का बदला हिंसा से लेने लगते हैं परंतु क्या यह उचित है लेकिन क्या अन्याय और अत्याचार को सहते रहना उचित है। क्या जिस तरह से विरोध इन दिनों हो रहे हैं वही तरीका उचित है। भगवान श्रीकृष्ण ने इस विषय में बड़ा ही गंभीर उदाहरण प्रस्तुत किया है। हम यहां प्रसंग प्रस्तुत कर रहे हैं, आपके जीवन के लिए इसका संकेत आपको स्वयं तलाशना है। संभव है, एक बार में ना मिले, तो बार बार पढ़ें। यह 100 प्रतिशत सच है कि आपको हल मिल जाएगा कि यदि आपके साथ अन्याय या भेदभाव हुआ है तो आपको क्या करना चाहिए।
कर्ण का प्रश्न कृष्ण से - "मेरी मां ने मुझे जन्म के तुरंत बाद त्याग दिया। मैं नाजायज पैदा हुआ, इसमें मेरी क्या गलती थी ? मुझे क्षत्रिय न मानकर द्रोणाचार्य ने मुझे शिक्षा नहीं दी। जबकि परशुराम ने मुझे शिक्षा तो दी, किन्तु बाद में मुझे क्षत्रिय मानकर सबकुछ भूलने का श्राप दे दिया। गलती से मेरा तीर एक गाय को लग गया, तो उसके मालिक ने भी मुझे श्राप दे दिया, जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। द्रौपदी के स्वयंवर में भी मुझे अपमानित किया गया। यहाँ तक कि कुंती ने भी मुझे सच बताया, तो अपने बेटों को बचाने के लिए। मुझे जो कुछ भी मिला वह दुर्योधन की कृपा से ही मिला। तो अगर मैं उसके पक्ष में हूँ, तो इसमें क्या गलत है ?
कृष्ण ने उत्तर दिया, "कर्ण, मैं जेल में पैदा हुआ था। मेरे जन्म से पहले ही मौत मेरा इंतजार कर रही थी। जिस रात मैं पैदा हुआ था, जन्म के तुरंत बाद जन्म देने वाले माता-पिता से अलग हो गया। बचपन से ही आप तलवारों की झंकार, रथ की गडगडाहट, घोड़ों की हिनहिनाहट, धनुष और तीरों का शोर सुनकर बड़े हुए हो। जबकि मैं गौशाला में पला बढ़ा, इतना ही नहीं तो मैं चलना सीखता, उसके पूर्व ही मेरे जीवन पर प्रहार प्रारम्भ हो गए! कोई सैन्य प्रशिक्षण नहीं, कोई शिक्षा नहीं, मैंने लोगों को कहते सुना कि मैं ही उनकी सारी समस्याओं का कारण हूं।
जिस समय आप लोग अपने शिक्षकों से अपनी वीरता की सराहना सुन रहे थे, मैं तो सामान्य शिक्षा से भी वंचित था। मुझे तो 16 वर्ष की आयु में ऋषि संदिपनी के गुरुकुल में विद्याध्ययन के लिए भेजा गया। आपने अपनी पसंद की लड़की से शादी की, किन्तु मैं जिसे प्यार करता था, वह मुझे नहीं मिली। मेरा विवाह उनसे हुआ, जो मुझे चाहती थीं, या जिन्हें मैंने दुष्टों के चंगुल से बचाया था। मुझे अपने पूरे समुदाय को जरासंध से बचाने के लिए, यमुना किनारे से सुदूर समुद्र तट ले जाना पड़ा, जिसके कारण मुझे रणछोड़ या कायर कहा गया।
यदि दुर्योधन युद्ध जीतता है तो आपको बहुत यश मिलेगा। धर्मराज अगर युद्ध जीतते हैं तो मुझे क्या मिलेगा? मुझ पर तो युद्ध और सभी संबंधित समस्याओं का दोषारोपण होगा। कर्ण एक बात याद रखो, हर किसी के जीवन में चुनौतियां हैं। जीवन किसी के लिए भी बहुत आसान नहीं है। दुर्योधन हो या युधिष्ठिर, वे भी अपवाद नहीं है। उन दोनों के साथ ही बहुत अन्याय हुए है।
लेकिन क्या सही है, क्या गलत, धर्म को विवेक से समझा जाता है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे साथ कितना अन्याय हुआ, या कितनी बार हमें अपमानित किया गया, या कितनी बार हमें हमारे अधिकारों से वंचित किया गया, महत्वपूर्ण है आपकी प्रतिक्रिया। कर्ण अब रोना बंद करो। जीवन में यदि आपके साथ कुछ अनुचित हुआ है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि आप गलत मार्ग पर चलने लगो, अधर्म का मार्ग अपना लो।
श्री हरिहर निवास शर्मा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रशिक्षित स्वयं सेवक हैं।