प्रमोशन में आरक्षण: SAPAKS ने किया मोदी सरकार के फैसले का विरोध

Bhopal Samachar
भोपाल। केन्द्र सरकार द्वारा पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किये जाने की कार्यवाही का सपाक्स संस्था विरोध करती है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पदोन्नति में आरक्षण हेतु जो मापदण्ड निर्धारित किये गये थे जिसमें सभी वर्गाें का प्रतिनिधित्व, प्रशासकीय दक्षता एवं पिछड़ापन (क्रीमीलेयर) के मापदण्ड निर्धारित किये थे। केन्द्र सरकार द्वारा उक्त मापदण्डों की अनिवार्यता समाप्त करते हुए पदोन्नति में आरक्षण हेतु संविधान में संशोधन की तैयारी कर पदोन्नति नियम बनाने की तैयारी की जा रही है। केन्द्र सरकार द्वारा अपने वादे ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ से पृथक् कुछ जाति विशेष मात्र के विकास के लिये सारे गुण-दोषों को ताक पर रखते हुए कार्य कर रही है जो पूर्व की कांग्रेस एवं अन्य सरकारों की ही तरह जाति/वर्ग के तुष्टिकरण की ही नीति है।

पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था देश में पूर्व से ही विद्यमान है जिसके संवैधानिक प्रावधानों की अनुचित व्याख्या कर इसका लाभ स्वयं केन्द्र सरकार के कई विभागों तथा राज्य सरकारों ने अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग को देते हुए मनमाने नियम बनाये। फलस्वरूप माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप कर कुछ बंधनकारी शर्तें निश्चित की गयीं एवं कई राज्यों के असंवैधानिक नियमों को निरस्त किया गया। खेदजनक है कि विभिन्न सरकारों द्वारा इनका पालन नहीं किया गया एवं न्यायालीन प्रक्रिया में प्रकरणों को उलझाया गया।

पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा लगाई गयी शर्तोें को शून्य करने के लिए वर्ष 2012 में कांग्रेस शासन में 117वां संविधान संशोधन विधेयक लाया गया जो राज्यसभा से तो पारित हुआ किन्तु लोकसभा से पारित न हो पाने के कारण यह विधेयक शून्य हो गया। तत्कालीन महान्यायवादी श्री वाहनवती जी ने सरकार को सलाह दी थी कि यह संशोधन संविधान सम्मत न होने से इसे लागू किया जाना कठिन होगा। अब लगभग पांच वर्षों बाद पुनः वर्तमान सरकार उसी ओर जा रही है जबकि पूरे देश में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर असंतोष व्याप्त है। प्रदेश में भी विगत् एक वर्ष से माननीय उच्च न्यायालय द्वारा मध्यप्रदेश पदोन्नति नियम 2002 असंवैधानिक ठहराये जाने के बाद से पदोन्नतियां बंद हैं एवं हजारों कर्मचारी प्रतिमाह प्रदेश भर में उनके पदोन्नति के अधिकारों से वंचित रहते हुए सेवानिवृत्त हो रहे हैं जबकि खाली पदों पर अनुचित रूप से अक्षम लोगों को ही प्रभारी बनाकर माननीय न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था की अवमानना की जा रही है।

सपाक्स संस्था पूर्व से ही इस असंवैधानिक व्यवस्था का विरोध करती रही है एवं अब केन्द्र सरकार द्वारा पुनः तुष्टिकरण की नीति के अंर्तगत की जा रही उक्त कार्यवाही का भी पुरज़ोर विरोध करती है।

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