नई दिल्ली। पिछली यूपीए सरकार की अतार्किक कोयला नीति की वजह से अधर में फंसे दर्जनों ताप बिजली घरों में फिर से काम शुरू होने की उम्मीद बलवती हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में 'शक्ति' नाम से एक नई कोल लिंकेज पॉलिसी को मंजूरी दी गई है जो नए ताप बिजली घरों को जहां आसानी से निविदा के जरिये कोयला ब्लॉक उपलब्ध कराएगा वहीं पुराने व अटके बिजली घरों को भी कोयला ब्लॉक उपलब्ध हो सकेगा। इससे कम से कम 30 हजार मेगावाट क्षमता के कोयला आधारित बिजली घरों में उत्पादन शुरू हो सकेगा। इससे देश में बिजली की उपलब्धता बढ़ेगी। परिणामस्वरूप बिजली की दरों को भी कम करने में आसानी होगी। साथ ही इन परियोजनाओं में जिन बैंकों के हजारों करोड़ रुपये कर्ज फंसे हुए हैं, उनके वापस मिलने का भी रास्ता साफ सकेगा।
शक्ति योजना का आधार सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला है जिसमें उसने पूर्व की सरकारों की तरफ से आवंटित सैकड़ों कोयला ब्लॉकों का आवंटन रद कर दिया था। बिजली मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि पूर्व की सरकार ने बगैर सोचे समझ 83 हजार मेगावाट क्षमता वाले दर्जनों ताप बिजली संयंत्रों को मंजूरी दी थी। इसमें से 18,600 मेगावाट क्षमता के संयंत्र तो आयातित कोयले पर आधारित थे। इनमें से तकरीबन 30 हजार मेगावाट क्षमता के संयंत्रों को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि इनका काम काफी हद तक पूरा हो चुका है, लेकिन कोयला लिंकेज की वजह से उत्पादन होने के आसार नहीं है। अब नई नीति इस स्थिति को ठीक करेगी। देश के पास पर्याप्त कोयला है और सभी को बिल्कुल पारदर्शी तरीके से इसका आवंटन किया जाएगा।
नए फॉर्मूले के तहत जिन कंपनियों को कोयला आपूर्ति का पूर्व की सरकारों ने लेटर ऑफ एश्योरेंस दिया हुआ है उन्हें अब ईंधन आपूर्ति समझौता करने का मौका दिया जाएगा। इस आधार पर इन्हें कोयला ब्लॉकों की नीलामी में हिस्सा लेने का भी मौका मिलेगा। निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियां बिजली खरीद समझौते (पीपीए) के आधार पर नीलामी में हिस्सा लेंगी। जबकि केंद्र व राज्य सरकारों की बिजली कंपनियों के लिए सरकार अलग से कोयला ब्लॉक आवंटित करेगी। ऊर्जा मंत्री का कहना है कि नई बिजली कंपनियों के बाजार में आने से बिजली की दरों में और गिरावट आने की स्थिति पैदा होगी।
बताते चलें कि यूपीए-एक सरकार ने वर्ष 2007 में कोल लिंकेज नीति लाई थी जिसके तहत 108,000 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजनाओं को कोयला देने का समझौता किया गया। लेकिन कोयला उत्पादन नहीं बढ़ पाने की वजह से इनमें से अधिकांश अटकी हुई हैं। इसके बाद कई परियोनजाओं को कोयला आयात करने की अनुमति दी गई। लेकिन अब जब देश में कोयला उत्पादन की स्थिति सुधरी है तो इन्हें नए सिरे से कोयला आवंटित करने की तैयारी की गई है।