राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में 12वी के नतीजे एक मील का पत्थर होते हैं। 12वीं की परीक्षा संचालित करने के लिए देश में 53 अधिकृत बोर्ड हैं, जिनमें सीबीएसई को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वर्ष सीबीएसई का परीक्षाफल 82 प्रतिशत रहा, जबकि पिछले साल 83 प्रतिशत था। इसमें 63 हजार परीक्षार्थियों ने 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक पाए, जबकि 10 हजार ने 95 प्रतिशत अंक पाए हैं। सीबीएसई के नतीजे हर साल बताते हैं कि हमारी स्कूली शिक्षा का यह बोर्ड उस वर्ग के स्कूलों और विद्यार्थियों का प्रतिनिधित्व करता है, जो अपेक्षाकृत संपन्न, शिक्षित और सजग परिवार से आते हैं। इन स्कूलों की क्वालिटी अच्छी है और शिक्षक अपने विद्यार्थियों से जुड़ाव व लगाव रखते हैं।
इसके विपरीत राज्य स्तरीय बोर्डों की तरफ गौर करें, तो पाएंगे कि देश में 12वीं कक्षा के ज्यादातर बच्चे जिन स्कूलों में पढ़ रहे हैं या जैसी शिक्षा पा रहे हैं, वहां सब कुछ ठीक नहीं है। बिहार मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश नतीजों से फेल होने वाले लाखों विद्यार्थी और उनके अभिभावक गहरी निराशा में हैं। कई अनुत्तीर्ण बच्चों की आत्महत्या की खबरें भी मिली हैं। मध्यप्रदेश में फेल बच्चों को पास होने का अवसर तक दे दिया गया है।
सीबीएसई, और राज्य बोर्डो के नतीजे हमारी स्कूली शिक्षा के गहरे वर्ग-विभाजन को दर्शाते हैं। देश में एक ओर संपन्न व प्रबुद्ध नगरीय मध्यवर्ग तथा उच्च वर्ग के लिए चमचमाते केंद्रीय विद्यालय, पब्लिक स्कूल, बोर्डिंग स्कूल व नवोदय विद्यालय हैं, तो दूसरी ओर छोटे शहरों, गांवों और कस्बों के वे सरकारी स्कूल या अनुदानित निजी स्कूल हैं, जहां सभी व्यवस्थाएं ठप हैं और इसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेना चाहता। अगर राज्य सरकार, शिक्षा अधिकारी, शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक अपनी जिम्मेदारी से बचते रहेंगे, तो स्कूली शिक्षा को लगातार रसातल में जाने से कौन रोक पाएगा?
हमारी स्कूली शिक्षा चुनौतियां विशाल हैं, जिनसे निपटने की संयुक्त जिम्मेदारी केंद्र व राज्य सरकारों की है। स्कूली शिक्षा पर सरकारों का ध्यान पिछले 10 वर्षों में बढ़ा है। देश के माध्यमिक स्कूलों में करीब पांच करोड़ विद्यार्थी पढ़ते हैं, जिनमें से दो करोड़ कक्षा नौ से 12 के होते हैं तथा शेष तीन करोड़ कक्षा छह से आठ में पढ़ते हैं। फिलहाल माध्यमिक कक्षाओं (नौवीं, 10वीं) में नामांकन अनुपात 60 प्रतिशत और उच्च माध्यमिक कक्षाओं (11वीं, 12वीं) में सिर्फ 38 प्रतिशत है।
शिक्षाविदों का मानना है कि हमारी स्कूली शिक्षा की तीन बड़ी चुनौतियां हैं- आम जनता के बडे़ वर्ग को स्कूली शिक्षा के अवसर न मिलना, स्कूली शिक्षा में व्याप्त असमानता और अच्छी क्वालिटी की स्कूली शिक्षा सबको न मिलना। देश में मोटे तौर पर तीन तरह के स्कूल हैं- सरकारी स्कूल, सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूल और गैर-सरकारी सहायता प्राप्त निजी स्कूल। दुर्भाग्य सबका पाठ्यक्रम एक समान नहीं तो समान नतीजों की कल्पना बेमानी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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