पंकुल शर्मा/बरेली। रमजान के महीने में सहरी के लिए रात 3 बजे लाउडस्पीकर से संदेश प्रसारित किया जाता है। यहां कुछ हिंदू और मुसलमान नागरिकों ने मिलकर प्रशासन से अपील की है कि इसे बंद कराया जाए। देश में शायद यह पहला मामला है जब मस्जिदों पर लगे लाउडस्पीकर के खिलाफ मुसलमानों ने भी शिकायत की है। हालांकि प्रशासन ने कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की बल्कि शिकायतकर्ताओं से कहा कि वो मस्जिद प्रशासन से जाकर बात करें। यदि समाधान ना निकले तो शिकायत करें।
अतिरिक्त जिला अधिकारी (एडीएम) ने बताया, 'मैंने पुलिस अधीक्षक (शहर) को मामले की जांच करने को कहा है और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के तहत सुलझाने को कहा है। या तो लाउडस्पीकर को मस्जिदों से हटाया जाएगा या फिर उसे काफी धीमी आवाज में बजाया जाए।'
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के तहत 10 दस बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर का इस्तेमाल नहीं हो सकता है। इसके अलावा कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 21 के तहत शांति से सोना मौलिक अधिकार है। सोने में खलल देना प्रताड़ना के समान है और यह मानवाधिकार उल्लंघन की श्रेणी में आता है। बता दें कि लोगों ने पिछले हफ्ते स्थानीय जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा था। समाजवादी पार्टी के करीब समझे जाने वाले उत्तर प्रदेश उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल (UPUVPM) ने भी स्थानीय लोगों के समर्थन में एडीएम से शिकायत की थी।
UPUVPM के जिला अध्यक्ष शोभित सक्सेना ने कहा, 'चाहे मस्जिद हो या मंदिर किसी भी धर्म में किसी दूसरे को तकलीफ नहीं दी जा सकती है।' उन्होंने कहा कि हमारे सात मुस्लिम पड़ोसियों ने भी इस बाबत शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कहा है कि रमजान दूसरों की मदद के लिए है न कि तनाव देने के लिए। आसिफ बेग नामक एक शिकायतकर्ता ने बताया, 'मेरी शिकायत के बाद कुछ लोगों ने मुझे घर जाते वक्त शाम को रोका और कहा कि मस्जिद के लाउडस्पीकर की शिकायत के कारण मुझे दोजख मिलेगा। उन्होंने मेरे साथ धक्कामुक्की की और वहां से भाग गए।'
बरेली के डेप्युटी शहर काजी मौलाना शहाबुद्दीन रिजवी ने कहा कि वह शिकायत से सहमत हैं। उन्होंने कहा, 'लोगों के जगाने के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल गलत है। अव्वल होना तो यह चाहिए कि कम आवाज में एक बार ऐसा होना चाहिए। कुछ मौलवी रिकॉर्ड किए गए आवाज को लगातार बजाते हैं। इससे दूसरों को तकलीफ होती है। यह रमजान के भावना के खिलाफ है।