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कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, कंट्रोल और अपील) नियम 1965 में संशोधन किया है और जांच एवं पूछताछ की प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरणों के लिए टाइम लाइन डिसाइड की है। नए नियमों के मुताबिक जांच एजेंसी को 6 महीने के भीतर जांच पूरी करके रिपोर्ट सबमिट करनी होगी। हालांकि सरकार ने यह भी तय किया है कि बेहतर और संतोषजनक कारणों के चलते जांच एजेंसी को दिए जाने वाले अतिरिक्त समय की अवधि भी एक समय में 6 महीने से ज्यादा नहीं होगी। अनुशासनिक प्राधिकारी को इसका लिखित में रिकॉर्ड रखना होगा।
संशोधित नियमों के मुताबिक अनुशासनिक प्राधिकारी को भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोपी सरकारी कर्मचारी को आरोपों के लेखों की एक प्रति, दुर्व्यवहार या दुर्व्यवहार के आरोपों की एक प्रति और दस्तावेजों और गवाहों की एक सूची देगा, जिसके आधार पर प्रत्येक आरोप को बनाए जाने का प्रस्ताव है।
सरकारी कर्मचारी को 15 दिन के भीतर देना होगा जवाब
एक बार सरकारी कर्मचारी को आरोपों की प्रति मिल जाती है, तो उसे 15 दिनों के भीतर स्वयं के बचाव में लिखित बयान देना होगा। इसके साथ ही वह यह भी इच्छा जाहिर कर सकता है कि उसे व्यक्तिगत रूप से सुना जाए। इसके लिए भी समय सीमा 15 दिन बढ़ाई जा सकती है, लेकिन किसी भी परिस्थिति में जवाब दाखिल करने की अवधि 45 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती। मौजूदा समय में इस तरह के बयान दाखिल करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है। नए नियम सभी वर्ग के कर्मचारियों पर लागू होंगे। इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के साथ अधिकारियों के कुछ अन्य वर्ग भी शामिल हैं।
एक साल पहले CVC ने दिया था निर्देश
साल 2016 में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने भ्रष्टाचार के मामलों की जांच पूरी होने में देरी पर चिंता जताई थी और सभी विभागों से इन्हें 6 महीने के भीतर पूरा करने को कहा था। आयोग का मानना था कि अगर ऐसा होता है, तो गवर्नेंस के बारे में बनी बनाई राय कि 'कुछ नहीं हो सकता' को बदलने में काफी मदद मिलेगी। दरअसल आयोग ने पाया था कि संबंधित विभाग अनुशासनिक स्तर पर जांच पूरी करने के लिए समय सीमा का पालन नहीं कर रहे हैं। इसके बाद ही सरकार ने नए नियम बनाए हैं।
22 प्रतिशत मामलों में 2 साल से ज्यादा का समय
हाल ही में एक अध्ययन में केंद्रीय सतर्कता आयोग ने पाया था कि अनुशासनिक प्रक्रिया में जांच के लिए संबंधित विभाग औसत रूप से दो साल से ज्यादा का समय ले रहे हैं। एक मामले में तो यह 8 साल से भी ज्यादा था। आयोग ने कहा था कि कम से कम 22 प्रतिशत मामलों में जांच की समय सीमा 2 साल से ज्यादा है।