राकेश दुबे@प्रतिदिन। कल केंद्र सरकार और राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ बाज़ार बंद था। देश का कारोबारी बहुत कम बोलता है। बाज़ार बंद करने जैसे फैसले तो वो बेहद मजबूरी में लेता है। पर ऐसा हो रहा है, बाज़ार तो बंद हुए ही, पूरे कारोबार जगत में एक अजीब सा माहौल दिख रहा है। एक अति-सक्रिय सरकार होने और दिन में चौबीस घंटे काम करने वाले प्रधानमंत्री के होते हुए भी निवेश सबसे निचले स्तर पर आ चुका है और वहीं पर अटका हुआ है। मोदी ने भारतीय कंपनियों के प्रमुखों को 2015 की एक बैठक में जोखिम उठाने की नसीहत दी थी। लेकिन कोई भी उनकी बात पर अमल करता नहीं दिखा।
असल में सबसे बड़ा जोखिम तो खुद प्रधानमंत्री मोदी ने उठाया है। उन्होंने अचानक ही देश की ८६ प्रतिशत मुद्रा को चलन से बाहर करने का ऐलान कर दिया। पॉल क्रुगमैन से लेकर मनमोहन सिंह तक तमाम प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने उसकी चौतरफा आलोचना की। निवेश के मॉरीशस मार्ग का इस्तेमाल नई कर संधि से सीमित हो जाने से कई शीर्ष उद्योगपति खुलकर प्रधानमंत्री मोदी के बचाव में आए। उन्हें उम्मीद थी कि काला धन खत्म होने और सभी लोगों के डिजिटल भुगतान अपना लेने के बाद सरकार की तरफ से निवेश बढ़ाने वाले कुछ अहम फैसलों का ऐलान किया जाएगा।
उद्योगपति आनंद महिंद्रा ने कहा था कि यह 'एक ऐसा साहसिक कदम है जिसकी हरेक शख्स को कद्र करनी चाहिए।' बैंकर आदित्य पुरी ने कहा था कि इस फैसले से पारदर्शिता और धन की आवाजाही का पता लगाया जा सकेगा। दावोस में मुकेश अंबानी ने भी कहा था कि 'नोटबंदी से भारत के चौथी औद्योगिक क्रांति के लिए तैयार होने की पुष्टि होती है, खासकर नरेंद्र मोदी जैसे सशक्त नेता की मौजूदगी में।' केवल राजीव बजाज ही साहस का परिचय देते हुए इस गुणगान से दूर रहे। उन्होंने नोटबंदी के विचार को ही गलत बताते हुए कहा था कि इसके क्रियान्वयन को दोष नहीं दिया जाना चाहिए।
नोटबंदी के दौरान बजाज के दोपहिया वाहनों की बिक्री में तीव्र गिरावट आई थी। ऑटो उद्योग की अन्य कंपनियों पर भी इस फैसले का ऐसा ही असर पड़ा था। एक और विलक्षण चुनाव नतीजे को अगर परे रखें तो अब यह काफी हद तक साफ है कि बजाज का आकलन सही था। छोटे एवं मझोले स्तर के किसी भी किसान या दुग्ध उत्पादकों या छोटे कारखानों के मालिक से पूछिए। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) अगले महीने लागू होने वाला है लेकिन कोई नहीं जानता है कि आपाधापी का नया दौर कारोबार पर क्या असर डालेगा? भारतीय कॉर्पोरेट जगत का कोई भी व्यक्ति इस चिंताजनक भविष्य के बारे में कुछ खास नहीं बोल रहा है। मोदी को इस वजह से भी चिंतित होना चाहिए। ये अच्छे संकेत नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए