राकेश दुबे@प्रतिदिन। मानसून में भोपाल खूबसूरत हो जाता है, इस बार भोपाल में मानसून तो अभी आया ही नहीं, प्री मानसून में कई लाख रुपये खर्च करके बनाये गये साइकिल ट्रैक दुर्दशा को प्राप्त हो गये। साइकिल तो आई ही नहीं तो चलती कैसे ? तेज बहते गंदले पानी में नगर निगम का खजाना बहते हुआ दिख रहा है। तंत्र का भ्रष्टाचार सडक पर दिख रहा है। वैसे भी प्रदेश की जनता और खास कर भोपाल की जनता सरकारी लूटपाट की बहुत चिंता भी नहीं करती, पर इससे भी और अधिक जुड़े बड़े मुद्दे हैं, जिन पर साइकिल ट्रैक बनाने से पहले सोचा जाना चाहिए था।
नये भोपाल में लोग शौकिया तौर पर साइकिल चलाते हैं, परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है कि सारे लोग साइकिल पर चलना भोपाल की शान समझते हों। साठ के दशक में भोपाल में एक विधायक होते थे, खान शाकिर अली खान उन्होंने विधान सभा में कहा था कि “ भोपाल में साइकिल चलाने वालों को दूध पिलाना चाहिए। सच है, भोपाल में रोड बने, नये रोड बने पर भौगोलिक परिवर्तन नहीं हुआ आज भी उतार-चढ़ाव वैसे ही हैं। वर्तमान भोपाल में अन्य वाहनों की संख्या राष्ट्रीय अनुपात से कम नहीं है। देश के अन्य नगरों में, जहां अधिकांश लोग साइकिलों से चलते हों और उनमें से एक बड़ी संख्या तेज रफ्तार वाहन चलाने वाले अराजक चालकों का शिकार होती है। भोपाल में साइकिल ट्रैक नहीं, उन गरीब पैदल चलने वालों के लिए भी सड़क पर अलग व्यवस्था होनी चाहिए, जो उन्मत्त वाहन चालकों के शिकार बनते हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों को देखें, तो स्पष्ट हो जाएगा कि इस मामले में भारत दुनिया के बदतरीन मुल्कों में से एक है।
साइकिल या पैदल चलने वालों के लिए ट्रैक एक ऐसा समाज बनाता है, जिसमें आंतरिक लोकतंत्र होता है। यह समाज अपने कमजोरों के लिए आदतन स्थान छोड़ता है। ऐसे ही समाज में यह संभव है कि सड़क पर चलने का पहला अधिकार पैदल चलने वाले को मिले। जिन भारतीयों को पश्चिम की सड़कों पर चलने का अनुभव नहीं है, वे शायद ऐसे दृश्यों पर विश्वास नहीं कर पाएंगे, जिनमें पैदल सड़क पार करने वाला एक बटन दबा दे और चारों तरफ से आने वाला ट्रैफिक तब तक ठिठका खड़ा रहे, जब तक वह सुरक्षित दूसरी तरफ न चला जाए। हम तो ऐसी स्थितियों के अभ्यस्त हैं, जिनमें ट्रक कार को, कार साइकिल को और साइकिल पैदल को धकियाती चलती है। जो जितना ताकतवर है, सड़क पर उसका उतना ही अधिकार है। अस्त-व्यस्त ट्रैफिक में ठिठके आपसे बड़े वाहन का चालक गाड़ी रोककर यह पूछ सकता है कि क्या आप अंधे या बहरे हैं कि आपने उसका हॉर्न नहीं सुना या सड़क आपके बाप की है कि उसके लिए रास्ता छोड़ आप पटरी पर क्यों नहीं भाग गए?
साइकिल ट्रैक की दुर्दशा के लिए अकेला नगर निगम जिम्मेदार नही है ,समाज जिम्मेदार है। पहले भोपाल के इस समाज को स्वीकार करना पड़ेगा कि सड़कों पर चलने का अधिकार पैदल या साइकिल चलाने वाले का अधिक है, तभी अलग साइकिल ट्रैक बनाने का कोई औचित्य हो सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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