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अमित शाह को माफ़ी देना चाहिए या नहीं। गाँधी के बारे में ऐसा जुमला उछालने के बाद। अमित शाह को तो यह सोचना ही चाहिए था की गाँधी सिर्फ आज़ादी के लिए ही जेल गये थे। उनके विरुद्ध ब्रिटिश सरकार कभी कोई झूठा आपराधिक मुकदमा तक दर्ज नहीं कर सकी थी। गाँधी के चरित्र पर टिप्पणी करने से पूर्व अपनी राजनीतिक यात्रा पर दृष्टिपात करते तो हिम्मत ही नहीं होती, खड़े होने की, बोलना तो दूर है। जिस व्यक्ति ने ब्रितानी शेरों और सांप्रदायिक ज़हर वाले सांपों पर जीत हासिल की, वह चतुर बनिया से कहीं अधिक था। अमित शाह ने रायपुर में कहा था, "गांधी चतुर बनिया था। गांधी को मालूम था कि कांग्रेस का आगे क्या हश्र होने वाला है, इसीलिए उन्होंने आज़ादी के बाद तुरंत कहा था कि कांग्रेस को बिखेर देना चाहिए। महात्मा गांधी ने नहीं किया, लेकिन अब कुछ लोग उसको बिखेरने का काम समाप्त कर रहे हैं
भारतीय जनता पार्टी में भी अब ऐसा ही कुछ हो रहा है। जनाब।
अब “गीता” की बात। भारत में गीता, वेद, पुराण पढने के समय हैं। इनका आयु से कोई लेना-देना नहीं। जन्म के बाद बच्चे के कान में पवित्र शब्द इन्ही ग्रन्थों से लेकर सुनाये जाते है और महा प्रयाण की वेला में वृद्धो को भी। पर किसी का राजनीतिक मुकबला करने के लिए “गीता पुराण और उपनिषद ” की बात राहुल गाँधी ही कर सकते है, कोई आश्चर्य की बात नहीं है, किसी-किसी को बड़ी उम्र में भान होता है। विदेश के स्कूल में नहीं भारत के ही स्कूल में ही गीतापाठ का प्रचलन है, उनका स्कूल ? गीता राहुल के जीवन को, गाँधी अमित शाह के जीवन को आलोकित करें। उपवास से शिवराज शांति ला सके, यही सदिच्छा। पर हर इन्सान को राह दिखाने वाले इन प्रतिमानों को बख्शिए। इनसे राजनीति मत कीजिये।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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