राकेश दुबे@प्रतिदिन। किसान और किसानी मध्यप्रदेश में एक अजीब उलझी पहेली होती जा रही है। मौजूदा आंकड़े जिन्हें सरकार ने चुनौती नही दी है और न ही उसके खंडन में कोई तर्क संगत बात ही कही जा रही है। यह सब कुल मिलाकर यह सब प्रदेश को मिले “कृषि कर्मण” पुरुस्कार को सवालिया निशान के घेरे में घेरते हैं। बाज़ार और किसान के बीच संवाद के लिए मौजूद कृषि और सहकारिता विभाग जैसी संरचनाये अपनी भूमिका के साथ न्याय नही कर रही है। न तो वे किसानो को सही सलाह दे पा रही है और न सरकार को। प्रदेश के किसान और किसानी पर फौरन एक श्वेत पत्र की जरूरत है। किसानों की आत्महत्या के बढ़ते आंकड़ों पर किसी को कोई मतलब नही है। मौसम की बेरुखी के बावजूद आंकड़ों में बढती खेती के दृश्य कहते हैं कि कही भारी लोचा है। ऐसे में समग्र श्वेत पत्र, उचित सलाह और समुचित कदम ही कुछ कर सकेंगे। वरन वाहवाही की बयार, सालों तक राग रुदन हो जायेगा।
कुछ आंकड़े सामने आये हैं। जैसे प्रदेश के हर किसान पर औसतन 1.05 लाख का कर्ज है। राज्य की किसानी में सहायक पशुपालन इन दिनों अत्यंत कमजोर दशा में है। जो आंकड़े सामने आये हैं, वे सरकारी उपेक्षा के ही दृश्य उपस्थित करते है। जैसे राज्य के पशुधन 23.13 लाख की कमी। आंकड़े सरकारी दस्तावेज से ही आये है अगर ये सच है तो किसान और विशेषकर छोटे किसान की बदहाली का श्री गणेश यही से है। प्रदेश में 15.9 लाख किसानो द्वारा किसानी छोड़ने के आंकड़े राज्य सभा में मौजूद है। प्रदेश में कृषि विकास दर के आंकड़े कम वर्षा और बाढ़ के बावजूद अप्रत्याशित रुप से बढ़े हैं। सरकारी आंकड़े राज्य में फल का उत्पादन दुगना, सब्जी का उत्पादन चार गुना, और मसालों का उत्पादन 11 गुना होने का दावा करते हैं। मुख्यमंत्री खुद अपनी किसानी कला से लाखों कमाने की बात कह कर अपनी पीठ ठोंक लेते हैं। इसके बावजूद प्रदेश में अब तक लगभग 20 हजार किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। यह सब क्या है ? समझ से परे है।
एनएसएसओ की रिपोर्ट कहती है प्रदेश में कोई 99 लाख परिवार खेती करते हैं। इनमे अफसरी और अन्य साधनों से रूपये कमाकर किसान बने लोगो के इनकम टैक्स में दिखाए गये आंकड़े भी किसान की दुर्दशा का एक बड़ा कारण है। ऐसे नकली और कुछ बड़े किसानो का प्रतिशत छोड़ दे तो किसानी में पेट पालना तभी संभव है जब उसके साथ पशुपालन या अन्य कोई सहायक रोज़गार साथ-साथ चले। लगातार बदहाल मौसम, खेती का बढ़ता रकबा, भरपूर उत्पादन, कृषि कर्मण पुरुस्कार, आत्महत्या करते किसान और गोली चलवाकर एक करोड़ का मुआवजा बाँटती सरकार। क्या ये सब दृश्य बेमेल नहीं है। शायद खुद को दिया जाने वाला सबसे बड़ा धोखा है। किसान के लिए नही, जनता के लिए नही, आपके खुद के लिए जरूरी है, इस पर एक श्वेत पत्र। उसके साथ में एक कारगर योजना भी। अनदेखी प्रदेश को बर्बाद कर सकती है, शिवराज जी।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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