
वंदिता ने कहा, ''रमज़ान में कैंपस के भीतर इस कदर धार्मिक माहौल रहता है कि मन में एक किस्म का डर बना रहता है। अगर कोई मुस्लिम साथी रोज़ेदार हो तो उसके सामने कुछ खाने में या फिर पानी पीने में भी अजीब लगता है। ऐसा लगता है कि कोई आपत्ति न जता दे।''
वॉशरूम में भी परेशानी होती है
वंदिता को कैंपस के भीतर हॉस्टल नहीं मिला है। वह अलीगढ़ के अहमद नगर में रहती हैं, अक्सर घर से बिना खाए निकलती थीं और कैंपस में जाकर खाती थीं। उन्होंने कहा कि कैंपस के बाहर भी रमज़ान के महीने में शाम से पहले खाने-पीने के लेकर काफ़ी दिक़्क़त होती है। उन्हें कई बार ऐसा लगता है कि वह किसी मज़हबी यूनिवर्सिटी में पढ़ती हैं जहां एक ख़ास मजहब के तौर-तरीक़ों को अपनाना मजबूरी है। वंदिता कहती हैं कि वॉशरूम में केतलीनुमा लोटा होता है जिसकी कभी आदत नहीं रही।
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कैंपस में एक मज़हब का बोलबाला रहता है
2000 से 2006 तक अलीगढ़ में जबी अफाक़ ने कॉमर्स की पढ़ाई की। अभी वह हिन्दुस्तान टाइम्स में पत्रकार हैं। उन्होंने कहा, ''कैंपस में एक मज़हब का बोलबाला रहता है। रमज़ान के महीने में केवल हिन्दुओं को ही नहीं बल्कि उन मुस्लिमों को भी दिक़्क़त होती है जो रोज़ा नहीं रखते हैं। आपको इस दौरान कुछ खाना है तो छुपकर खाना होगा। कैंपस की सारी कैंटीन बंद हो जाती हैं। कैंपस के बाहर भी ढाबों में पर्दे लगा दिए जाते हैं। ऐसे में किसी लड़की को खाने में काफ़ी दिक़्क़त होती है।
जबी बताते हैं कि उनका अलीगढ़ में घर है इसलिए दिक़्क़त नहीं होती थी लेकिन जो बाहर के लोग हैं उनके लिए रमज़ान का महीना आसान नहीं है। जबी ने कहा कि जो अपने घर से भी खाना लेकर आते हैं उनके लिए रमज़ान के महीने में खाना सहज नहीं है।
मानो यूनिवर्सिटी नहीं कोई धार्मिक संस्थान है
संजीव जायसवाल (बदला हुआ नाम) ने अलीगढ़ से ही ग्रैजुएशन, मास्टर और एमफ़िल किया है। अभी वह यहां से पीएचडी कर रहे हैं। संजीव ने बताया, ''शुक्रवार को हाफ़ टाइम के बाद जुम्मे की नमाज़ के लिए छुट्टी दे दी जाती है। इस दौरान भी सारी कैंटीन बंद हो जाती हैं। संजीव ने कहा, ''दूसरे कैंपस में आप धर्म की आलोचना कर सकते हैं। उसे कटघरे में खड़ा कर सकते हैं लेकिन अलीगढ़ में आप ऐसा करने से पहले 10 बार सोचेंगे। ऐसा लगता है कि हम किसी यूनिवर्सिटी में नहीं बल्कि किसी धार्मिक संस्थान में पढ़ाई कर रहे हैं। लोग यहां लाइब्रेरी में भी नमाज़ अदा करते हैं। अगर कोई नमाज़ अदा कर रहा है और आप वहां हैं तो ज़्यादा सतर्क होना पड़ता है। आप उतना सहज नहीं रह सकते।
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भारत की साझी संस्कृति का हिस्सा है
पीरज़ादा ने कहा कि कैंपस का माहौल भारत की साझी संस्कृति का हिस्सा है और उसी के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि यहां किसी पर किसी भी तरह का दबाव नहीं डाला जाता है। हालांकि वंदिता ने कहा कि यहां के कैंपस में लड़कियां काफ़ी सुरक्षित हैं। उन्होंने कहा कि कोई फ़ब्तियां नहीं कसता है और न ही बदतमीजी करता है। एक सेक्युलर स्टेट की यूनिवर्सिटी में धार्मिक गतिविधियों के लिए कितनी जगह होनी चाहिए? इस पर फ़ैसल फ़ारूक़ी ने कहा कि यह अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी है और इस बात की आप उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।