
यह यात्रा आत्महत्या कर रहे किसानों के घर उनका दर्द बांटने जाये। उनकी समस्याएँ जाने, उनके दुःख-दर्द में सहभागी बने, उन्हें मुआवज़ा दिलवाए तथा मंडियों में अपने कृषि उत्पाद बेचने कई-कई दिनो से परेशान लाइनों में लगे किसानो के पास जाये। उनकी परेशनियाँ जाने, फ़सल ख़रीदी में हो रही अव्यवस्थाओं का निदान करे।
किसानो के कृषि उत्पाद बेचने में उनकी मदद करे, बारिश सर पर है और किसान अपनी फ़सलों को बेचने के इंतज़ार में सड़कों पर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा है। तो ही ये किसान संदेश यात्रा सार्थक अन्यथा दशहरा मैदान के उपवास की तरह ये यात्रा भी किसी ड्रामे से कम नहीं।
साथ ही इस यात्रा के प्रचार-प्रसार पर ख़र्च किये जा रहे लाखों रुपये किसानो के कल्याण व उनके हित पर ख़र्च किये जाये तो ही ये यात्रा सार्थक। वेसे भी भाजपा ड्रामे और कौतुक में मास्टर है। अगले चरण में 6 करोड़ पौधे एक साथ लगाने के एक नये ड्रामे की भी तैयारी कर रही है।