शैलेंन्द्र गुप्ता/भोपाल। किसान आंदोलन के बाद शुरू हुई राजनीति का नापतौल शुरू हो गया है। राजनीति के पंडितों का मानना है कि सिंधिया का 'सत्याग्रह' पूरी तरह से सफल रहा जबकि शिवराज सिंह का 'उपवास' फ्लॉप। 'सत्याग्रह' से सिंधिया को काफी फायदे हुए। उनकी छवि में निखार आया। वो कांग्रेस के सभी कार्यकर्ताओं से मिल पाए ओर सबसे बड़ी बात यह कि वो खुद को एक आम आदमी की तरह पेश कर पाए जबकि शिवराज सिंह को काफी नुक्सान हुआ। उनकी छवि एक लक्झरी नेता की बन गई। उपवास के लिए 2 करोड़ के पंडाल ने उनका काफी उपहास उड़ाया। किसानों के बीच उनकी छवि खराब हुई। सिंधिया के साथ पूरी कांग्रेस नजर आई जबकि शिवराज के साथ पूरी भाजपा उपस्थित नहीं दिखी।
किसान अंदोलन के वक्त किसी भी कांग्रेस नेता को यह अंदाज नहीं था कि उसे इतनी तेजी से मैदान में उतरना होगा। मंंदसौर में चली गोली और 6 किसानों की मौत के बाद प्रदेश कांग्रेस सहित दिग्गज नेताओं ने पिछले साढ़े 13 साल में प्रदेश सरकार को घेरने के लिए इतनी तेजी नहीं दिखाई। इस तेजी का सबसे ज्यादा फायदा ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिला। सिंधिया ने जैसे ही मंदसौर जाने का प्लान बनाया वैसे ही उनकी कोर टीम सक्रिय हो गई। कोर टीम और नेताओं के बात करने के बाद सिंधिया ने अपनी छवि महाराज और श्रीमंत वाली छवि को तोड़ने के लिए सत्याग्रह का ऐलान कर दिया। कोर टीम ने उनके टेंट में कूलर, एसी नहीं होने के साथ ही पलंग पर सोना और मटके का पानी पीने को जमकर प्रसारित किया।
प्रदेश भर के कार्यकर्ताओं से भी मिले
सिंधिया ने 48 घंटे के अपने सत्याग्रह को जमकर भुनाने की प्रयास भी किया। उन्होंने प्रदेश भर से आए कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की। इस दौरान कई लोगों ने उन्हें अपने क्षेत्र की समस्या से भी अवगत कराया। सिंधिया का भी लक्ष्य यही रहा होगा कि वे प्रदेश भर के ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओं के संपर्क में आए और क्षेत्रवार समस्याएं जाने। इस सत्याग्रह से उनका यह मिशन भी सफल रहा। वे प्रदेश भर के दिग्गज नेताओं को भी अपने मंच पर लाने में सफल रहे। इसके अलावा गांधी विचारक सुब्बाराव का भी सिंधिया के मंच पर आना देश भर में कांग्रेस की गांधीवादी विचारधारा को बल देगा।