
रायपुर मध्यप्रदेश से निकल कर ही छत्तीसगढ़ की राजधानी हुआ है। रायपुर दूध, ब्रेड, अंडे, आलू, चावल, केला, टैक्सी, पेट्रोल जैसे रोजमर्रा की जरूरतों में भोपाल से सस्ता है। देश की राजधानी दिल्ली तो सिनेमा और प्याज़ को छोड़ सभी मामलों में भोपाल से सस्ती है। अब सवाल ये है की भोपाल इतना महंगा क्यों है ? उत्तर है बेवजह की वाहवाही का चक्कर और दूरदृष्टि का अभाव।
मध्यप्रदेश सरकार घाटे में होने के बावजूद नये नये प्रयोग सिर्फ वाहवाही के लिए करती है, जैसे मंदसौर। राज्य सरकार की देखादेखी स्थानीय सरकार अर्थात नगर निगम भी वाहवाही के घर फूंक प्रयोग में जुटी हुई है। साईकिल ट्रेक इसका उदाहरण है। पहले राहगीरी जैसा प्रयोग हुआ था अब राह, राहगीर और राह्गीरी सब गायब। नगर निगम के बही-खाते राह्गीरी के प्रयोग पर खर्च के नाम लाखों का आंकडा बताते हैं। साईकिल अभी चली नहीं है, आंकड़े लाखों तक पहुंच गये हैं।
राजधानी को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए दक्षिण से उत्तर तात्या टोपे नगर में खूब गहमागहमी हुई और जारी है। सरकार के कारिंदे उसे यह समझाने और समझने को तैयार नही कि उत्तर और दक्षिण तात्या टोपे नगर को स्मार्ट करने की बजाय नये रायपुर जैसी कोई स्मार्ट संरचना विकसित की जाये। मौजूदा पेड़ काटकर, वर्तमान अधोसंरचना को उखाड़ कर कुछ बनाना स्मार्ट होना नहीं होता। भोपाल शहर से लगे गाँव जिनमे बड़े शैक्षिक संस्थान हैं, पुलिस के ट्रेनिग कालेज हैं। बड़ी चौड़ी सडकें हैं, वहां स्मार्ट सिटी क्यों नहीं हो सकती। बहुत सारी सरकारी जमीन भी है वहाँ। शायद इस गाँव का नाम कनासैया है। जितनी चौड़ी सडक यहाँ से गुजरती है भोपाल में कहीं नही। सवाल सरकार की दृष्टि का है।
स्मार्ट सिटी और स्मार्टनेस की बात तो दूर सरकार की दृष्टि तो भोपाल महंगा क्यों है ? तक भी नहीं पहुंची है। कारण भोपाल में पेट्रोल और डीजल का महंगा होना है। भोपाल में ये देश के किसी अन्य शहर की बात छोड़ दे विदेश से भी महंगे है। मध्यप्रदेश की सरकार के लिए गर्व करने लायक प्याज़ है जो देश में सबसे सस्ती अभी भोपाल में हैं, पर प्याज़ खाकर कोई कभी स्मार्ट हो सकता है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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