
प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं निःशक्तजन कल्याण विभाग के अधीन संचालित इस आयोग की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। कार्यालय में स्वीकृत स्टाफ भी उपलब्ध नहीं है। बमुश्किल 5-6 लोगों के भरोसे सारी व्यवस्थाएं चल रही हैं। पिछले साल तक आयुक्त रहे बलदीप सिंह मैनी का कार्यकाल 3 जून 2016 को समाप्त हो चुका है। उसके बाद से इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं हुई, कार्यालय की व्यवस्थाएं एकमात्र अधिकारी सहायक संचालक के भरोसे चल रही हैं। कमरों में रखे नए फर्नीचर पर धूल की मोटी परत चढ़ गई है, दफ्तर की साफ-सफाई भी ठीक से नहीं हो पा रही। कार्यालय परिसर में मल्टीलेबल पार्किंग का निर्माण भी चल रहा है, इसलिए यहां शांति के वातावरण की उम्मीद भी कल्पनातीत है।
दफ्तर में घुसने की जद्दोजहद
आयोग के गेट पर दिन भर ताला लटका रहता है, कभी कोई दिव्यांग अपनी शिकायत लेकर आ जाए तो सबसे पहले उसे कार्यालय में आने के लिए ही जद्दोजहद करना पड़ती है। चारों तरफ गंदगी और गेट पर ठेले-गुमटी वालों का जमाव बना रहता है। जैसे-तैसे कोई भीतर आ भी जाए तो उसे न्याय कैसे मिले यह सवाल सभी के सामने रहता है। कार्यालय का रिकार्ड बताता है कि हर महीने यहां 15-20 दिव्यांग अपनी शिकायतें लेकर आते हैं। 2015-16 में कुल 271 प्रकरण आए जिनमें से 79 अभी तक लंबित हैं। उसके पहले भी करीब 200 लोग अपनी समस्याओं के साथ यहां पहुंचे थे। पिछले दो-तीन महीने की संख्या को उल्लेख ही नहीं।
अंधेरा घिरते ही बन जाता है असामाजिक तत्वों का अड्डा
रात होते ही आयोग के इस परिसर में असामाजिक तत्वों का जमाव होने लगता है। दफ्तर के चारों तरफ जहां-तहां शराब की खाली बोतलें पड़ी हुई आसानी से देखी जा सकती हैं। मार्केट के कारोबारियों और यहां आने वाले ग्राहकों के लिए यह क्षेत्र मुक्ताकाशी 'टॉयलेट' का सुविधा स्थल भी बना हुआ है। इसलिए हर समय चारों तरफ बदबू का आलम रहता है।