
सच है, सरकारी आदेश कवच बन गया है। भोपाल की ओर आते ट्रक और उससे रिसता नर्मदा जल इस बात का गवाह है कि रेत किनारे से नही, मंझधार से भरी है। सरकार ने तो आदेश निकाल कर अपना चेहरा साफ़ कर लिया। जिन्हें आदेश का पालन कराना है, उनके पास अमला नहीं है, और जो हैं वे ट्रक पर लिखे “चौहान” से डरते हैं।
आप सवाल कर सकते हैं, तुम तो नर्मदा पुत्र नहीं हो? नदी के घर में भी नही रहे हो ? किसी नर्मदा यात्रा परिक्रमा में भी ले जाये नही गये हो ? अमरकंटक में प्रधानमंत्री से स्वच्छता के गुर सीखने के 500 रूपये लेने वाली भीड़ के भी हिस्से भी नही रहे हो। फिर ये नर्मदा प्रेम क्यों ? उत्तर है-पिछले एक सप्ताह से रोज आती खबरे और कल बड़े भाई और वरिष्ठ पत्रकार द्वारा आशीर्वाद स्वरूप दी गई एक छोटी सी किताब “सप्त सरिता”। काका साहेब कालेलकर द्वरा 1955 में लिखी यह पुस्तक मुझे मेरे लिखने की टेबिल पर रखने का आदेश मिला। पुस्तक के 14वें अद्ध्याय के 85वें पृष्ठ पर वर्णित नर्मदा का “रेव” स्वरूप तो कहीं दिखता ही नहीं है। किताब में बहुत कुछ है, वक्त मिले तो बांचिये।
इसे पढ़ते-पढ़ते पिछले कई महीनों से आ रही सूचनाएं दिमाग में कौंध गई। फोन से. मेल से , व्हाट्स एप से और छोटे बड़े अख़बारों में छपे समाचार, सब मिलाकर एक दृश्य उपस्थित करते है। श्री समृद्ध माँ के आंचल को भेदती जेसीबी और पोकलेन मशीन। खेत, खलिहान और जंगल में उगे रेत के पहाड़, अल्प और निक्कमे कारकून और आदेश निकाल कर रेत माफिया को संरक्षण देती सरकार।
सरकार को किसने रोका है, जंगल और गाँव में सर्च कराने से, रेत के पहाड़ बनाने वालों को पकड़ने से, नदी के किनारों से दूर खेत, गाँव और जंगल में जमा रेत को जब्त करने से। एक दो ट्रक रेत जब्त करके वाहवाही मत लूटिये। जनता को अब भी रात में रेत खोदती जेसीबी और पोकलेन दिख रही है। जनता बेबस है वो कतर स्वर में एक ही बात कह रही है “ऐ भईया, नरबदा मईया के पिरान छोड़ दो”
हाँ! एक बात और एक राज में प्रदेश में बहुत से ठेकेदार पैदा हो गये थे, वो राज बिजली, पानी और सडक की भेट चढ़ गया था। इस बार ये खुदाई ......!
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क 9425022703
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