
अजाक्स के खिलाफ खड़ा हो गया सपाक्स
भोपाल के पत्रकार वैभव श्रीधर की रिपोर्ट के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर सरकार जिस तरह अजाक्स (अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी-कर्मचारी संगठन) के साथ खड़ी नजर आई उसने सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ाई। चंद लोगों से शुरू हुए सपाक्स में आज 65 से 70 हजार सदस्य हैं। सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संगठन) ने संगठन को और मजबूत करने के लिए अजाक्स की तर्ज पर आईएएस अफसर को नेतृत्व सौंपने की रणनीति पर भी काम शुरू कर दिया है। पिछले महीने मंत्रालय में दो-तीन अफसरों के साथ बंद कमरे में बैठकें भी हो चुकी हैं। संगठन के पदाधिकारियों का मानना है कि कोई आईएएस अधिकारी नेतृत्व के लिए आगे आता है तो वजनदारी और बढ़ जाएगी। मंत्रालय में पिछले दिनों सपाक्स से जुड़े कर्मचारियों ने बाकायदा काली पट्टी लगाकर विरोध का इजहार भी किया।
नुक्सान हर हाल में भाजपा और शिवराज का होगा
अधिकारियों-कर्मचारियों के वर्गों में बंटने से सरकारी कार्यालयों में वर्ग-संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है। जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जाएगा, वैसे-वैसे सरकार के लिए स्थितियां कठिन होती जाएंगी। अगस्त में पदोन्न्ति में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई भी होनी है। माना जा रहा है कि फैसला जिस भी पक्ष में आएगा, दूसरा पक्ष मुखर हो जाएगा। चुनाव के समय इसे संभालना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा क्योंकि कर्मचारी अब संगठित होने लगे हैं।
1 करोड़ से ज्यादा फीस चुका दी गई वकीलों को
पदोन्न्ति में आरक्षण मामले में राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति-जनजाति का पक्ष लेते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सरकार ने मामले की सुनवाई के लिए सॉलिसीटर जनरल मुकुल रोहतगी, हरीश साल्वे, संजय आर हेगड़े, गोपाल सुब्रमण्यम, इंद्रा जयसिंह, वी. शेखर की सेवाएं ली हैं। इन वकीलों को 64 लाख रुपए की फीस दी गई है। जबकि सवर्णों की लड़ाई लड़ रहे सपाक्स ने वकील राजीव धवन, राम जेठमलानी, सीपी राव और शशिभूषण सहित अन्य वकीलों की सेवाएं ली हैं। संगठन इन्हें 40 लाख से ज्यादा फीस दे चुका है
इसके बाद जो होगा वो भयावह होगा
कर्मचारियों का धु्रवीकरण हो रहा है। इसका कारण राजनीतिक दल हैं, जिन्होंने वोटबैंक की राजनीति के चलते चुनिंदा वर्गों को सुविधाएं दीं। इससे वंचित वर्ग में प्रतिक्रिया होना स्वभाविक है। पदोन्न्ति में आरक्षण के मुद्दे ने इस भावना को भड़काने में बड़ी भूमिका निभाई है। इसका असर निश्चित तौर पर शासन-प्रशासन के कामकाज पर भी पड़ेगा। दोषारोपण की स्थितियां बनेंगी और भरोसे का संकट खड़ा होगा।
केएस शर्मा, पूर्व मुख्य सचिव
15 साल पहले ही पड़ गए थे बीज
अधिकारियों-कर्मचारियों का जातीय आधार पर धु्रवीकरण की शुरुआत 15 साल पहले ही हो गई थी। जातीय आधार पर कर्मचारी बंट गया है। सरकार की लापरवाही के चलते माहौल और खराब हुआ। पदोन्नति में आरक्षण कानून के रद्द होने की वजह से इसका विस्तार हुआ है।
विजय श्रवण,प्रवक्ता,अजाक्स
गलत है पर बंट गए हैं
गलत है लेकिन ये सच है कि अधिकारी-कर्मचारी जातीय आधार पर बंट गए हैं। इसके लिए सरकार की जिम्मेदार हैं। आरक्षण के बाद पदोन्नति में आरक्षण फिर बैकलॉग और अब निजी सेवाओं में भी आरक्षण की तैयारी। आखिर दूसरों के लिए कहीं कोई विकल्प बचा है क्या?
डॉ.आनंद कुशवाह, अध्यक्ष,सपाक्स