
1993 में हुआ मुंबई सीरियल धमाका देश में अपनी तरह का पहला बड़ा आतंकी हमला था। इसने पूरे देश को हिला कर रख दिया था। तब दुनिया के अन्य किसी भी देश में आतंकवाद अपने मौजूदा स्वरूप में सामने नहीं आया था। करीब आठ साल बाद 2001 में अमेरिका में हुए 9/11 हमले की तुलना 1993 के मुंबई हमले से की जा सकती है। अमेरिका उस हमले से कुछ वैसा ही विचलित हुआ, जैसा तब भारत हुआ था। मगर दोनों देशों की प्रतिक्रिया में अंतर साफ देखा जा सकता है। अमेरिका ने बौखलाहट में कौन-कौन से कदम उठाए और वे कितने सही या गलत थे, इस तरह के सवालों को फिलहाल छोड़ दें तो इतना साफ है कि आतंकी हमले के दोषियों को सजा देने में अमेरिकी हुकूमत काफी तत्पर रही। आखिर ओबामा के कार्यकाल में ओसामा बिन लादेन को भी मौत के घाट उतार दिया गया। इसके उलट भारत में कभी इस तरह की बेचैनी नहीं दिखी। न तो तत्कालीन नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल में, न ही बाद की सरकारों में इस बात को लेकर कोई संकल्प दिखा कि सभी दोषियों के गिरेबान तक कानून का हाथ पहुंचे और वे सजा पाते हुए दिखें।
सरकारें आती रहीं जाती रहीं उनके के दावे आते रहे, पर इन 24 सालों में उस नेटवर्क को भी नेस्तनाबूद नहीं किया जा सका, जो आज भी दुबई और कराची से सक्रिय है और कभी नकली नोट तो कभी किसी और संदर्भ में जिसका जिक्र होता रहता है। हमारे राष्ट्रीय चरित्र पर इससे दुखद और क्षोभ टिप्पणी और क्या हो सकती है?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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