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मामला दमोह के हटा जनपद के मड़ियादो ग्राम पंचायत के किसानपुरा और बछामा का है। सुदूर ग्रामीण अंचल और शासन की योजनाओं से कोसों दूर झोपड़ियों में रहने वाले ये किसानपुरा और बछामा के आदिवासी। जो प्रतिदिन दिन मजदूरी करके जैसे तैसे अपने परिवार का भरण पोषण कर पाते हैं। जिनकी जिन्दगी सूर्य के उदय से शुरू होती है और शाम ढलने के साथ ही ढल जाती है। आजादी के बाद से इस गांव के लोगों ने कभी अपने गॉव में बिजली नहीं देखी लेकिन जब उनके हॉथों में विद्युत विभाग ने बिजली के बिल थमा दिये तो भौंचक्के रह गये।
अब उन्हेंं समझ नहीं आ रहा कि वह करें तो क्या करें। किसानपुरा गांव के बिहारी गौड, दशरथ, राममिलन, हीरालाल, छोटेलाल, मानक चन्ना, कलू इत्यादि दो दर्जन से अधिक लोगों ने बताया कि हमारे गांव में बिजली के खंबे लगे है और उनपर तार भी खिंचे है लेकिन किसी की झोपड़ी में बिजली नहीं है फिर भी पूरे गांव को बिजली के बिल दिये गये है। मामला यहां तक होता तो बात और थी।
ग्राम बछामा में एक ही परिवार के सदस्यों के नाम से अलग अलग बिल दिए गए। अधिकतर बिल पति पत्नि के नाम से दिए गए। जिनमें शंकर आदिवासी इनकी पत्नी महारानी आदिवासी चतुरसिंह गौड पत्नि वर्षा रानी, हरिसिंग गौड पत्नि गीता सहित गांव के दर्जनों परिवार शामिल है नाबालिग बच्चों के नाम से भी बिजली बिल भेजे गये ऐसी खबर है।
बछामा में दयाराम आदिवासी और हाकम आदिवासी जो इस दुनिया में नहीं हैं, उनके नाम पर भी बिल भेजा गया है। इस तरह यदि दोनों गॉवों की बात करें तो डेढ से दौ सौ परिवार विघुत विभाग के इस कहर से पीड़ित नजर आ रहे है। इस पूरे मामले पर दक्षिण पूर्व मध्य क्षेत्र विद्युत मंडल के अधीक्षण अभियंता एस. के. गुप्ता का कहना है कि बछामा और किसानपुरा मूल गांव हो सकते है जहॉ पर बिजली नहीं है और बिजली के बिल जा रहे है यह मझरे टोले या उनके मुहल्ले हो सकते है।