ऋण वसूली: वे किसान नही, धनवान हैं !

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश में कर्जे के कारण किसान आत्महत्या कर रहे है। प्रदेश का एक जिला छतरपुर है, जिसमे कर्जा न चुकाने वाले किसानो के हथियार जब्त करने की चेतावनी जिला कलेक्टर ने दी है। दूसरी ओर भारतीय बैंकों ने देश के बड़े औद्योगिक घरानों को जितना कर्जा बांट रखा है, उसमें कितना हिस्सा फंसे हुए कर्जों का है, फिलहाल कोई नहीं जानता। यह रकम सात लाख करोड़ से लेकर बीस लाख करोड़ रुपये के बीच कुछ भी हो सकती है।

एक चलन बन गया है कि कर्जा जिस कंपनी के नाम पर इसे उठाया गया है, उसे दिवालिया बताकर कर्जे को चुपचाप ज्यादा फायदे वाले धंधों में लगा देना भारतीय उद्यमी जगत के एक बड़े हिस्से की पहचान होती जा रही है। रिजर्व बैंक की यह पहल स्वागत योग्य  है कि उसने सबसे बड़े रद्दी कर्जों वाली 12 कंपनियों को चुनकर कर्जदाता बैंकों को उनके खिलाफ इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) के तहत कार्रवाई शुरू करने का निर्देश जारी कर दिया है,परन्तु इसके लिए भी बैंक को मामला नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) के पास ले जाना होगा। 

ट्रिब्यूनल कंपनी से छह महीने के अंदर कर्ज अदायगी का खाका तैयार करने को कहेगा। इस अवधि में यह काम संभव नहीं हुआ तो 270 दिन यानी नौ महीने बाद कंपनी या उसके अलग-अलग हिस्सों को बेच कर संबंधित बैंकों, शेयरधारकों और कर्मचारियों का बकाया अदा करने का प्रयास किया जाएगा। यह बात कहने में आसान है, पर करने में कितनी मुश्किल साबित होगी इसका कुछ अंदाजा विजय माल्या केस से लगाया जा सकता है। ये सब किसान ,नही धनवान है। किसान से वसूली में तो घर के बर्तन तक सडक पर लाने में बैंक कोई कसर नहीं छोडती हैं।

नियमानुसार ट्रिब्यूनल में जाने के बाद किसी भी संस्थान से पूंजी निकाली नहीं जा सकती, लेकिन धनवानों को इसके हजार रास्ते पता होते हैं। नतीजा यह कि बिक्री या नीलामी का समय आते-आते कंपनी के नाम पर कुछ बचता ही नहीं। बैंकों के हिस्से आते हैं सिर्फ प्रदर्शन कर रहे बेरोजगार कर्मचारी और अदालत का दरवाजा खटखटा रहे आम निवेशक।किसान के पास खेत और परिवार के अलावा कुछ नही होता। वो सडक पर उतर रहा है, उसके कर्जों में चालाकी नहीं है, उसके विदेश भाग जाने का खतरा भी नही है। अगर ये विभेद दूर नही हुए तो वर्तमान माहौल में भारतीय अर्थव्यवस्था की चूलें हिल सकती है, लिहाजा सरकार को कुछ ऐसा जरूर करना चाहिए कि  किसान और धन्ना सेठों को दिए गये कर्जो और वसूली के एक समान नियम बनाये। जिससे फसल उगती रहे और कारखाने चलते रहे। दोनों जरूरी है, पर चालाक धन्ना सेठों से पहले वसूली हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!