राकेश दुबे@प्रतिदिन। खेती के मौजूदा संकट का संबंध अधिक उत्पादन से है। इस साल उपज अच्छी रही है लेकिन किसान फिर भी मुश्किल में हैं। अधिक उत्पादन होने से उनकी उपज की कीमत कम हो गई है। अच्छी पैदावार होने से तो किसानों के पास अपने नुकसान की भरपाई करने और कर्ज चुकाने का मौका था। लेकिन ऐसा कर पाने में नाकाम किसानों की हताशा उन्हें कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर करती है।
किसानों की इस समस्या के कई पहलू हैं। पहला, देश फसलों के लिए अधिक कीमतें कैसे दे पाएगा? हमें खाद्य महंगाई दर को भी नीचे रखने की जरूरत है, क्योंकि भोजन की ऊंची लागत उपभोक्ताओं को नाखुश कर देती है। यह भी सच है कि भारत में बेहद गरीब लोगों की बड़ी संख्या है। सरकार सस्ती दरों पर खाद्य सामग्री मुहैया कराने के लिए किसानों से कृषि उत्पाद खरीदती है और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों में वितरित करती है। इस तरह देश भुखमरी जैसी स्थिति से बचा रहता है। ऐसे में सरकार दुविधा की स्थिति में फंसी हुई है। एक तरफ किसान हैं जिन्हें खाद्य उत्पादों की सही कीमत देने की जरूरत है।
दूसरी तरफ हजारों किसानों समेत ऐसे लोग हैं जो महंगा भोजन खरीद पाने में अक्षम हैं। इसके बावजूद अभी तक सरकार की नीति किसानों को भुगतान करने की नहीं, खानपान के सामान पर सब्सिडी देने की रही है। न्यूनतम समर्थन मूल्य [एम् एस पी] की पूरी प्रणाली ही इसी पर टिकी है।
दूसरी चुनौती कृषि उत्पादों के सही मूल्य-निर्धारण से जुड़ी है। किसानों के लिए तो एमएसपी उपज मूल्य में होने वाली उठापटक से सुरक्षा देने वाला एक बीमा है। लेकिन एमएसपी केवल २२ खाद्य फसलों के लिए ही लागू है। अब एमएसपी प्रणाली को नए सिरे से बनाने की जरूरत है। भोजन की लागत को उसकी समग्रता में समझने की जरूरत है। खेती का लागत मूल्य बढऩे से किसानों की आय कम हो रही है। किसानों को लगातार मौसम की मार झेलनी पड़ती है जिससे फसलों को भी काफी नुकसान होता है। लिहाजा हमें यह पता ही नहीं है कि एक किसान हमारी थाली तक भोजन पहुंचाने के लिए कितना निवेश कर रहा है?
भोजन की लागत पर हो रही इस चर्चा में दो नुकसानदायक विकृतियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। पहला, किसान को उसकी उपज के लिए भुगतान किस मूल्य पर किया जा रहा है और उस उत्पाद को उपभोक्ता किस मूल्य पर खरीदते हैं। हर कोई जानता है कि दोनों मूल्यों का अंतर लगातार बढ़ रहा है। कृषि संबंधी प्रतिबंधात्मक कानूनों से लेकर भंडारण, ढुलाई और बिचौलियों की भूमिका कम करने के लिए जरूरी ढांचागत सुविधाओं की कमी को इस मूल्य असमानता की वजह माना जाता है। अगर हम किफायती दर पर भोजन सामग्री चाहते हैं तो इस पर गौर करने की जरूरत है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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