नई दिल्ली। अब तक कर्जमाफी केवल सरकार और किसानों का विषय हुआ करता था परंतु इस बार कर्जमाफी देश का मुद्दा बना दिया गया है। एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो किसी भी प्रकार की कर्जमाफी का समर्थन नहीं करता। ना करोड़पति करोबारियों को ना ही किसानों को। उनका मानना है कि कर्जमाफी से देश का विकास रुकता है। अब तक हुई किसानों की कर्जमाफी के कारण ही उत्पादन बढ़ाने वाली योजनाओं पर काम नहीं हो सका। अब कर्जमाफी के बाद योजनाओं पर पैसा तो खर्च नहीं किया जा सकता। अत: योजनाएं शुरू होने से पहले ही बंद कर दी जातीं हैं या फिर विचार के स्तर पर ही रोक दी जा रहीं हैं। स्वामीनाथन ने किसानों की समस्या का स्थाई हल सुझाया है।
महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में किसानों आंदोलन उग्र होने के बाद स्वामीनाथन ने अलग-अलग मौकों पर अपनी राय दी है। पेश हैं उनकी कही बड़ी बातें -
कर्जमाफी तात्कालिक रूप से भले ही जरूरी हो, लेकिन इससे लंबे समय तक किसानों का भला नहीं होना है। किसानों का कर्ज माफ होने से देश पर बोझ बढ़ेगा।
बैंक कर्ज माफ करेंगे, फिर सरकार उन्हें मुआवजा देगी। सरकारी खजाने से निकला यह वही फंड होगा, जो बीज उत्पादन बढ़ाने, मिट्टी की सेहत सुधारने और पौधों का बचाव करने के नए तरीकों पर खर्च किया जा सकता था।
पहले भी कर्ज माफ हुए हैं, लेकिन किसानों का आत्महत्या तो नहीं थमी। सूखे से एक फसल खराब होती है और किसान बर्बाद हो जाता है। फिर वहीं कर्जमाफी का ऊपरी तौर पर लगाया गया मरहम। इससे तो कृषि विकास पर लगाम लग गई है।
जब तक किसान इनपुट जैसे फर्टिलाइजर में इनवेस्ट नहीं करेंगे, तब तक खतरे में रहेंगे। सूखा या फसलों को बीमारी लगने से उत्पादन घटने का हमेशा डर बना रहेगा।
यहां छुपा है समस्या का हल
स्वामीनाथन के अनुसार, इन हालात से बचाने का एक मात्र तरीका है कि उत्पादन बढ़ाने के उपायों पर जोर दिया जाए। सरकार को मल्टीपल क्रॉपिंग यानी बहु-उपज को प्रोत्साहन देना चाहिए। ऑर्गेनिक खेती फायदेमंद हो सकती है, लेकिन ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट को लेकर सरकार प्राइज सपोर्ट देना होगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उपज का अधिकाधिक मुनाफा किसान की जेब में जाए, न कि बिचौलियों की जेब में।