
ज्यादातर कंपनियां कर्मचारियों पर खुद ही रिजाइन करने का दबाव बना रही हैं। एक कर्मचारी ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि पिछले महीने की 23 तारीख को उनके पास कॉल आया कि उन्हें दो सप्ताह का वक्त दिया जा रहा है। यदि वह रिजाइन करते हैं तो दो महीने की बेसिक सैलरी दी जाएगी। इसके बाद 29 मई को फिर उनके पास कॉल आया कि उन्होंने रिजाइन क्यों नहीं किया है? जब उन्होंने रिजाइन करने से इनकार किया तो एचआर ने उन्हें धमकाया कि वे उनका कॉन्ट्रैक्ट टर्मिनेट कर सकते हैं, इसके बाद उन्हें कहीं और नौकरी नहीं मिलेगी। इस कर्मचारी ने बताया कि उसके पास 31 मई को फिर से फोन आया और कहा गया कि अपनी नौकरी बचानी है तो निकालने के लिए किसी और कर्मचारी का नाम बताएं।
इस कर्मचारी ने यह भी बताया कि 31 मई को उसके पास एक ईमेल भी आया जिसमें लिखा था कि वह उसका आखिरी वर्किंग डे है। उसकी कंपनी मेल आई और अन्य सुविधाएं बंद कर दी गई थी। उसने बताया कि उसके पास एचआर टीम का कोई मेल नहीं आया, वे केवल फोन पर बात कर रहे हैं।
क्यों हो रहा ऐसा?
ज्यादातर कंपनियों के कॉन्ट्रैक्ट में यह शामिल है कि कर्मचारी को नौकरी से निकालने पर उन्हें 10 महीने की सैलरी के साथ नोटिस पीरियड की सैलरी भी देनी होगी। इस वजह से कंपनियां कर्मचारियों पर खुद ही रिजाइन देने का दबाव बना रही हैं। ऐसा करने पर उन्हें काफी कम पैसे कर्मचारी को देने होंगे। इस कर्मचारी ने यह भी बताया कि उसके तीन कलीग पहले ही नौकरी छोड़ चुके हैं। उसके एक कलीग जिसे पिछले महीने ही प्रमोट किया गया था उसे भी रिजाइन देने के लिए कहा गया है।
लेबर लॉ में शामिल नहीं आईटी इंडस्ट्री
फोरम ऑफ आईटी एम्प्लॉयीज (FITE) के कोऑर्डिनेटर राजेश ने कहा, "हमें हर दिन अलग-अलग कंपनी के कम से कम दस कर्मचारी कॉल करते हैं। ज्यादातर लोग यही बताते हैं कि उन्हें बिना कोई रीजन बताए रिजाइन देने को कहा गया है। उनके पास इसके लिए कोई आधिकारिक मेल भी नहीं आया है। FITE ने इस संबंध में कर्नाटक के लेबर कमिश्नर से मुलाकात करने की योजना बनाई है। हालांकि आईटी इंडस्ट्री लेबर लॉ के अंतर्गत नहीं आती है।
इस मामले में आईटी मिनिस्टर प्रियंक खड़गे ने कहा, "हमने कर्मचारियों के एक फोरम से मुलाकात की थी। उन्होंने बताया कि कंपनियां जबरदस्ती उनसे रिजाइन मांग रही हैं लेकिन कोई भी शिकायत दर्ज नहीं करा रहा है। वे डरे हुए हैं." खड़गे ने आगे कहा, "मैंन उनसे पूछा कि क्या उन्होंने कोई कानूनी मदद ली है, तो वे चुप रहे। मैंने उन्हें कानूनी मदद दिलाने की पेशकश की ताकि उनका पक्ष समझा जा सके, लेबर डिपार्टमेंट के सरकारी नियमों को समझा जा सके। फिलहाल उनके पास इस मुद्दे की पूरी कानूनी समझ नहीं है।