नई दिल्ली। गुजरात उच्च न्यायालय ने मुस्लिम समुदाय की 18 वर्ष से कम लेकिन 15 साल से अधिक आयु वर्ग की युवती द्वारा की जाने वाली लवमैरिज के मामले में पुलिस की उस कार्रवाई को अवैध ठहराया गया है जिसके तहत कथित पति के खिलाफ किडनैपिंग और रेप का मामला दर्ज किया जाता है। कोर्ट का कहना है कि शरिया नियम के मुताबिक 18 साल की होने के पहले लड़की की शादी को मान्यता दे दी गई है। अत: इस तरह का निकाह मान्य है। आईपीसी की धाराएं यहां लागू नहीं हो सकते।
जिस मामले में कोर्ट ने यह फैसला सुनाया वो कुछ इस प्रकार था, धोराजी का आरिफ अफवन, जो छह साल पहले 16 वर्षीय फरीदा के साथ भाग गया था। फरीदा के पिता ने लड़के के खिलाफ लड़की को बहला फुसलाकर भगाने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी जिस पर आईपीसी की धारा 163 और 366 लगाई गई थी। हालांकि दोनों ने 2011 में विवाह कर लिया था। जिस काजी ने उन दोनों का निकाह कराया था उसने उनका मैरिज सर्टिफिकेट भी दिखाया है।
जब वे दोनों शांति से रहना शुरू कर दिए तो अफवन ने अपने ऊपर लगे अपहरण के मामले को हटाने के लिए उच्च न्यायालय में अपील की। उसके वकील ने उच्च न्यायालय में सर्वोच्च न्यायालय की दलीलें भी रखीं। सभी पक्षों को देखते हुए गुजरात उच्च न्यायलय ने अफवन के खिलाफ लगे अपहरण के चार्जेज को हटा लिए।
अन्य मामले में, दिसंबर 2016 में शहर के एक सेशन कोर्ट ने 21 वर्षीय मोहम्मद जैद मंसूरी को उसके ऊपर लगे रेप के चार्जेज से बरी कर दिया जबकि उन दोनों से जन्मे बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने पर ये साबित हो चुका था कि उसकी पिता जैद मंसूरी ही है। मामले में 15 वर्षीय नाबालिग लड़की ने मंसूरी के खिलाफ एएफआईआर भी दर्ज कराई थी लेकिन बाद में उन दोनों की मैरिज सर्टिफिकेट ने मंसूरी को बचा लिया।
मंसूरी के वकील ने उच्च न्यायलय मे तीन साल पहले पास हुए एक कानून की दलील दी जिसमें कहा गया था कि एक मुस्लिम लड़की बालिग होने पर अपनी मर्जी से शादी कर सकती है। साथ ही शरिया कानून के मुताबिक मुस्लिम समुदाय की लड़की 15 साल की उम्र में परिपक्व हो जाती है और वो अपनी मर्जी से शादी करने के लिए स्वतंत्र होती है। हालांकि उच्च न्यायलय ने 2015 में एक अहम फैसला लेते हुए माना था कि बाल विवाह अधिनियम (पीसीएमए) का निषेध जैसे एक विशेष कानून मुसलमानों के निजी कानूनों पर चल रहा है, जहां मुसलमान अपने नाबालिग बेटियों की शादी करवाते हैं।
इसी प्रकार, 28 वर्षीय युन्नुश शेख के खिलाफ भी बलात्कार, अपहरण और पोस्को के उल्लंघन के आरोपों को हटा लिया गया जिसने उस 16 वर्षीय मुस्लिम लड़की से शादी कर ली थी। लेकिन उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया था कि बाल विवाह को रोकने के कानूनों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई अवश्य की जानी चाहिए।