नई दिल्ली। मप्र में किसानों के उग्र आंदोलन की भले ही कुछ सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और बयानवीर नेताओं ने निंदा की हो परंतु एक गंभीर बात सामने आ गई है कि किसान के सब्र की सीमाएं अब टूट चुकीं हैं। वो आत्महत्याएं कर करके थक चुका है। अब बदलाव चाहता है और यह करना ही होगा। किसानों को प्रिय लगने वाले भाषणों से अब काम चलने वाला नहीं है। देश में हरितक्रांति के जनक और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन ने अमेरिका से ईमेल पर सुधीर गोरे के सवालों के जवाब देते हुए कहा है कि कर्जमाफी का मरहम नाकाफी है और बीमारी की जड़ तक जाकर इलाज करना होगा। उन्होंने बताया कि इस गंभीर समस्या का समाधान क्या है?
किसान क्यों गुस्से में हैं?
किसान कई गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं और अपने विरोध-प्रदर्शनों के जरिए इस ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। देश का एक बड़ा हिस्सा बीते सालों से गंभीर सूखा झेल रहा है। हालात और बिगड़ गए हैं क्योंकि अच्छी उपज होने पर भी किसानों को सही दाम नहीं मिल रहा है। यही दर्द अब एक के बाद एक राज्य में उभरकर सामने आने लगा है।
क्या समाधान है इन समस्याओं का?
सरकार को उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना होगा, खासतौर पर छोटे किसानों के लिए। सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी खरीद के जरिए उपज का सही दाम दिया जाए। किसानों पर बने राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों को लागू करना होगा। खासतौर पर उस सिफारिश को, जिसमें कहा गया है कि किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए।
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ऐसे हालात क्यों बने?
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में वर्षा आधारित खेती होती है। गुजरे सालों में मानसून की बारिश में ऊंच-नीच देखने को मिली है। वहीं इस साल बंपर उपज हुई है, लेकिन खरीदी मूल्य बेहद कम होने से असंतोष बढ़ा है। पिछला लोन नहीं चुकाएंगे तो अगले सीजन के लिए कर्ज नहीं मिलेगा। यही कारण है कि इन दो प्रदेशों में किसान आंदोलन भड़क गया।
राज्य और केंद्र सरकारों को क्या करना चाहिए?
सरकार को कृषि उत्पादों की कीमतों का निर्धारण, मार्केटिंग, खरीदी और वितरण सुनिश्चित करना होगा। इस पर राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के प्रतिनिधि बैठक करें और जरूरी फैसले लें। दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रभावों के अध्ययन के लिए एनडीसी की स्पेशल मीटिंग्स हों। सरकार ने तकनीक के मोर्चे पर अच्छा काम किया है, लेकिन मूल समस्या आय की है। महंगाई और मौजूदा दौर के हिसाब से इस दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए। सियासी हितों के साथ ही इस मुद्दे का जनता से सीधा जुड़ाव और मीडिया के दखल को देखते हुए उम्मीद की जाना चाहिए कि किसानों की इन समस्याओं जल्द समाधान हो जाएगा।
किसानों के लिए सरकार ने जो लक्ष्य रखे हैं, वे कैसे पूरे होंगे?
केंद्र सरकार ने पांच साल में किसानों की आय दोगुना करने की योजना बनाई है। यह अच्छी बात है, लेकिन कीमतों के निर्धारण और खरीद नीति पर ध्यान दिए बगैर यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाएगा। केंद्र सरकार ने जो ब्याज सहायता देने का फैसला किया है, उसका स्वागत है, लेकिन किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का फॉमूला तुरंत लागू होना चाहिए।
स्वामीनाथन ने भारत में कृषि पर किताब लिखी है, 'M.S. Swaminathan: The Quest for a world without hunger'। पिछले माह इस किताब के दूसरे खंड का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विमोचन किया था। मोदी ने इस मौके पर स्वामीनाथन को 'कृषि वैज्ञानिक' के साथ 'किसान वैज्ञानिक' भी संबोधित किया था।