अनिल नेमा। मप्र शासन के आदेश क्रं.एफ-1/2013/22/पं-2 भोपाल दिनांक 4 सितम्बर 2013 जिसका श्रेय मुरलीधर पाटीदार के कुशल नेतृव्व में राज्य अघ्यापक संघ को है। इस आदेश से अपनी बात आरंभ करता हूं। 2013 का यह आदेश ‘‘समान कार्य-समान वेतन’’ की अवधारणा और शिक्षक संवर्ग को 2006 से मिले 6 वे वेतनमान के परिपालन में था। आदेश के प्रथम पैरा में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘राज्य शासन द्वारा निर्णय लिया गया है कि पंचायत के अधीन कार्यरत अध्यापक संवर्ग एवं राज्य शासन के शिक्षक संवर्ग के वेतन के अंतर को अगामी चार वर्षो में समायोजित किया जावेगा ’’ इस आदेश की जो विशेषता थी वो
(1).समान कार्य समान वेतन का परिपालन अर्थात 01/09/2017 में अंतरिम राहत के समायोजन के पश्चात 2007 के सहा.अध्यापक/अध्यापक/ वरि.अध्यापक का वेतन 2007 के सहायक शिक्षक/शिक्षक/व्याख्यता के बराबर होगा।
2. अध्यापक संवर्ग को नियुक्ति दिनांक अर्थात 2007 से 6 वां वेतनमान का काल्पनिक लाभ देते हुये चार किस्तों में 2013 से भुगतान ।
परन्तु इस आदेश में दो कमियां थी
(1).सहायक अध्यापक/वरि.अध्यापक की काल्पनिक गणना में विसंगति
(2).2007 के पूर्व के अध्यापकों को अतिरिक्त वेतनवृद्वि देने की बात।
ये दो विसंगति के लिये हमें चुनाव के बाद अर्थात 2014 से सरकार के खिलाफ एकजुट होकर लड़ना था किन्तु अध्यापक नेताओं की फूट, राजनैतिक महत्वकांक्षा से उदित एक संगठन ने बिना कुछ अध्ययन किये इस आदेश को त्रृटिपूर्ण बताते हुये अपनी बेतुकी मांग 6 वां वेतनमान दिया जावें’’ रखकर आम अध्यापकों की भावनाओं से खेलते हुये भोपाल में अनावश्यक प्रदर्शन किया। अनावश्यक शब्द इसलिये लाजमी है कि 6वां वेतनमान प्रदान किये जाने की मांग ही गलत है क्योकि 2013 से ही हमें किस्तों में 6 वां वेतनमान प्रदान किया जा रहा था।
अध्यापक आन्दोलन की मांग ‘विसंगति का निराकरण होना था’, गणना पत्रक की मांग के चक्कर में हमने अपनी कुछ मांग जैसे अनुकम्पा नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानांतरण नीति इन मांगों को विलोपित कर दिया। सरकार भी जानती थी कि गणना पत्रक और 6वें वेतनमान की मांगों के बीच अध्यापक नेता ‘‘समान कार्य-समान वेतन’’ की मांग को भूल चुके हैं। लिहाजा सरकार अध्यापकों को गणना पत्रक के इंतजार में 3 बरस झुलाती रही, एक गणना पत्रक जारी होता उसकी विसंगति उजागर होती उस पत्रक का दहन होता। अध्यापक नेता बल्लभ भवन से लेकर मुख्यमंत्री निवास तक चक्कर लगाकर दूसरे पत्रक की मांग करते फिर दूसरा निकलते उसकी विसंगति, फिर दहन यह कार्यक्रम चलता रहता। अध्यापक नेता सभा में चिल्लाते ‘‘अघ्यापकों को 6 वां वेतनमान दो’’।
दरअसल भैया ये मांग ही गलत है 6 वां वेतन हमें 2013 से मिल रहा है, सभा में ये चिल्लाओं ‘2013 के आदेश की विसंगति दूर करो, 2007 के पूर्व के अध्यापकों को उनकी सेवा के बदले वेतनवृद्धि प्रदान करो, अनुकम्पा नियुक्ति के नियम बदलो, स्थानांतरण नीति के शुभआगमन की तारीख दो। तीन गणना पत्रक जला दिये मिला क्या।
(1). वर्ष 2016 से 6 वां वेतनमान जबकि शिक्षक संवर्ग को मिला 2006 से और 2013 के आदेश में मिल रहा था 2013 से .
(2).समान कार्य समान वेतन की बात ही समाप्त हो गई क्या अब 2017 से 2007 के सहा.अध्यापक/अध्यापक/वरि.अध्यापक का वेतन 2007 के सहायक शिक्षक, शिक्षक, व्याख्यता के बराबर होगा?
(3). 2007 के पूर्व के अध्यापकों को उनकी 9 वर्ष की सेवा के बदले क्या वेतनवृद्धि का प्रावधान है।
(4). होना था सहायक अध्यापक/वरि.अध्यापक की सारणी में परिवर्तन पर अघ्यापकों की सारणी में कमी कर एकरूपता लाने का प्रयास।
कुल मिलाकर 11 अध्यापक संगठनों के अथक प्रयास के उपरांत बीते चार बरस में चार विसंगति युक्त गणना पत्रक के अलावा आम अध्यापक को कुछ नहीं मिला।