भोपाल। आदिम जाति कल्याण विभाग के अपर संचालक सुरेन्द्र सिंह भंडारी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप मामले में आज विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ। कांग्रेसी विधायकों ने मंत्री लालसिंह आर्य को घेर लिया। कांग्रेस विधायक निशंक जैन के प्रश्न लगाया था जिसका मंत्री संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए। आर्य कहना था कि उन्होंने कुछ दिन पहले ही विभाग का काम संभाला है, दो महीने का समय तो दे दो। विभाग में सात साल पहले का क्या मामला है, जिसकी उन्हें जानकारी नहीं है। एक महीने के भीतर विभाग के अपर संचालक सुरेंद्र सिंह भंडारी पर जो आरोप लगाए गए हैं, उनकी जांच कर सख्त कार्रवाई करेंगे।
स्थिति बिगड़ते देख आर्य के बचाव में मंत्री उमाशंकर गुप्ता और विजय शाह भी आ गए। इसके बाद भी कांग्रेस विधायक भंडारी को सस्पेंड किए जाने की मांग पर अड़े रहे। उनकी यह मांग न माने जाने पर कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट कर दिया। इससे पहले कांग्रेस विधायक निशंक जैन ने कहा कि अपर संचालक सुरेंद्रसिंह भंडारी को हटाए जाने को लेकर कोर्ट का स्टे होने का जवाब दे रहे हैं, उसका प्रश्न से कोई संबंध नहीं है।
उनका सीधा प्रश्न है कि 68 करोड़ के घोटाले के आरोपी अफसर भंडारी को सरकार बचा रही है, जबकि यह मामला 2010 का है और इसकी जांच मुख्य सचिव, दो विभागों के प्रमुख सचिव भी कर चुके हैं। सात साल बीत जाने के बाद भी अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। जैन ने आरोप लगाया कि इतना ही नहीं उक्त अफसर शाम को महिला कर्मचारियों को कार्यालय में बुलाते हैं जिसकी शिकायत महिला कर्मचारियों द्वारा की गई है। रामनिवास रावत ने कहा कि लोकायुक्त की जांच में भी भंडारी पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती में गड़बड़ी की पुष्टि हुई है। इसके बाद भी कार्रवाई नहीं की जा रही है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने सदन से बाहर मीडिया से चर्चा में कहा कि सरकार भ्रष्टों को शह दे रही है।
यह है घोटाला
सुरेंद्रसिंह भंडारी जो वर्तमान में आदिम जाति कल्याण विभाग में अपर संचालक हैं। उनके द्वारा 2010 में 68 करोड़ का दोहरा आहरण किया गया, जिसकी उन्हें पात्रता नहीं थी। इस राशि में से 70 लाख रुपए चपरासी और एक बाबू के खाते में ट्रांसफर हो गए। यह मामला जब तत्कालीन एसीएस वित्त के पास पहुंचा तो उन्होंने यह जानकारी 2014 में मुख्य सचिव को दी। मुख्य सचिव ने अपर मुख्य सचिव वित्त, पीएस आदिम जाति कल्याण और अनुसूचित जाति को बुलाकर मीटिंग ली और नोटशीट लिखी जिसमें अपर संचालक पर सख्त कार्रवाई करते हुए एफआईआर कराने के आॅर्डर दिए, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
अपर संचालक ने दो ड्राइवरों की भर्ती की, जिसकी उन्हें पात्रता नहीं थी। यह शिकायत लोकायुक्त में हुई जिसमें प्रथम दृष्ट्या इन भर्तियों के लिए अफसर को दोषी पाया गया। इस पर विभाग ने नोटिस भी जारी किया है।
उक्त अफसर से प्रताड़ित होकर एक पत्रकार ने मंत्रालय में आत्महत्या कर ली। इसकी एफआईआर जहांगीराबाद थाने में हुई।
एक महिला अफसर का आरोप है कि उन्हें आफिस टाइम के बाद बुलाया जाता है। उन्होंने इसकी शिकायत आदिम जाति कल्याण विभाग के पीएस से की है। अपर संचालक का रुतबा इस कदर है कि इस जांच को भी दबा दिया गया है।