
आदिनाथ है शिव
भगवान भोलेनाथ आदिनाथ है शिव लिंग तथा भगवती योनि का प्रतीक चिन्ह ही सृष्टि के ऊद्भव का संकेत है। सृष्टि के शिवशक्ति स्वरूप का पूजन सनातन धर्म अनुयायी श्रद्धा से करते है।
आदिगुरु
भगवान शिव मे सृष्टि को जन्म दिया गुरु शिष्य परम्परा के निर्वाह तथा योग ज्ञान की पद्यति को बढ़ाने के लिये नाथ परम्परा की शुरुआत की। इसमे वे खुद आदिनाथ तथा दत्तात्रेय रूप मे आदिगुरु के रूप मे अवतरित हुए इस परम्परा को नाथ परम्परा कहते है। ये लोग परमयोगी तथा कालजयी होते है।
शिवकृपा से दोषों का नाश
भगवान शिव संहारक है इसीलिये मृत्युंजय है। महाकाल है। इनकी आज्ञा से ही काल किसी को व्यापता है। समस्त जीव जो किसी का प्राण लेते है वो शिव आज्ञा से ही लेते है। रोग बीमारी दंड विपत्ति शिवगणों के कारण ही आती है। शनि और यम जो की दंडाधिकारी तथा मौत के देवता है वे भी शिव आज्ञा से यह कार्य करते है। भगवान शिव के पांचवे अवतार काल भैरव शिव आज्ञा से ही दुष्टों को दंड देते है। इसीलिये जो भी शिवभक्त होते है उनकी विपत्तियों से रक्षा होती है।भगवान शिव दयालु है इसीलिये अपने भक्तों की संकटों से रक्षा करते है।
श्रावण मास का महत्व
भगवान शिव का जल तत्व मन की पवित्रता से गहरा संबंध है। श्रावण मास मे वर्षा ऋतु का मौसम होता है। सूर्य इस समय चंद्र की राशि कर्क मे होता है। चंद्र पर भगवान शिव की विशेष कृपा है। चंद्र को भगवान शिव ने अपने मस्तक पर स्थान दिया है। इसीलिये श्रावण मास मे शिवपूजन से मन तथा आत्मा की शुद्धि होती है। साथ ही भगवान शिव की कृपा होती है।
प.चन्द्रशेखर नेमा"हिमांशु"
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