जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में साफ किया कि राज्य में जन्म लिए और शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को स्थानीय निवासी होने के आधार पर अनुसूचित जाति व जनजाति संबंधी आरक्षण हासिल करने का पूरा अधिकार है। न्यायमूर्ति एसके पालो की एकलपीठ ने इस कानूनी बिन्दु के निर्धारण के साथ ही आवेदकों के खिलाफ धारा- 420, 467, 468, 471, 120-बी के तरह दर्ज एफआईआर और सीजेएम कोर्ट में विचाराधीन आपराधिक प्रकरण समाप्त करने का राहतकारी आदेश पारित किया।
हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में लिखा कि-''भले ही कोई व्यक्ति किसी अन्य प्रदेश में पैदा होने के बाद मध्यप्रदेश में केन्द्र सरकार के विभाग में अनुसूचित जाति का आरक्षण लेकर नौकरी करता रहा हो, लेकिन उसको मध्यप्रदेश में आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। यह शर्त उस सूरत में भी लागू होगी, जबकि उसकी जाति मध्यप्रदेश में भी अनुसूचित जाति के रूप में अधिसूचित हो।
हालांकि यदि उसकी संतानें मध्यप्रदेश में ही पैदा हुई हैं और उन्होंने अपनी शिक्षा भी मध्यप्रदेश में ही प्राप्त की हो, तो उन्हें मध्यप्रदेश का स्थानीय निवासी माना जाएगा। इस स्थिति में यदि उनकी जाति मध्यप्रदेश में भी अनुसूचित जाति सूची में अधिसूचित हो तो उन संतानों को मध्यप्रदेश में आरक्षण की पात्रता होगी।
क्या था मामला- मध्यप्रदेश में जन्म लेने और अध्ययन कर मेडिकल और इंजीनियरिंग की शिक्षा आरक्षित कोटे के तहत प्राप्त करने वाले याचिकाकर्ता हंसराज सिंह, महेन्द्र राज सिंह और सुशील कुमार सिंह के खिलाफ सीआईडी भोपाल ने आपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया था। साथ ही केस सीजेएम कोर्ट में विचाराधीन भी हो गया। लिहाजा, वे हाईकोर्ट की शरण में चले आए।
उनकी ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्शमुनि त्रिवेदी और सुशील कुमार तिवारी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि इस मामले में सीआईडी ने न्याय की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। याचिकाकर्ताओं ने वैधानिक तरीके से आरक्षण का लाभ लिया, इसके बावजूद उन्हें धोखे से आरक्षण का लाभ लेने का आरोपी बना लिया गया।