राकेश दुबे@प्रतिदिन। एक बड़ा सवाल इस महीने आये आंकड़ों ने खड़ा कर दिया है कि महंगाई घटने का उद्योग विकास पर विपरीत असर होता है। दोनों ही जरूरी है महंगाई कम हो और विकास का पहिया भी चले ऐसी नीति पर विचार जरूरी हो गया है। तेल और खाद्य सामग्री की कीमतें गिरने से जून खुदरा महंगाई में कमी आई है जिससे कन्ज्यूमर इन्फ्लेशन (उपभोक्ता मुद्रास्फीति) अब तक के सबसे निचले स्तर 1.54 प्रतिशत पर पहुंच गया है। सरकार द्वारा कल जारी आंकड़ों के मुताबिक, मई में खुदरा महंगाई 2.18 प्रतिशत थी जो जून में कम होकर 1.54 प्रतिशत पर पहुंच गई है। जानकारों को मानना है कि खुदरा महंगाई दर कम होने से रिजर्व बैंक पर ब्याज दर कम करने का दबाव बनेगा। इसके विपरीत आई आई पी ग्रोथ कम हुई है।
जून में खुदरा महंगाई 2012 के बाद से सबसे निचले स्तर पर थी, साथ ही यह आरबीआई के 4 प्रतिशत के मीडियम-टर्म टारगेट से भी लगातार आठवें महीने भी कम थी। जानकारों के मुताबिक महंगाई में कमी की वजह बेस इफेक्ट रहा है। जून में महंगाई का आंकड़ा आरबीआई के अनुमान से भी कम है। आरबीआई ने अप्रैल-सितंबर के लिए 2 से 3.5 प्रतिशत तय की थी।
महीने दर महीने आधार पर जून में शहरी इलाकों की महंगाई दर 2.13 प्रतिशत से घटकर 1.41 प्रतिशत रही है। ग्रामीण इलाकों की बात करें तो महंगाई दर 2.3 प्रतिशत से घटकर 1.59 प्रतिशत रही है। खाद्य महंगाई दर 1.05 प्रतिशत के मुकाबले 1.17 प्रतिशत रही। सब्जियों की महंगाई दर 13.44 प्रतिशत के मुकाबले 16.53 और फलों की महंगाई दर 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 1.98 प्रतिशत रही है।
भले ही मंहगाई दर के आंकड़े राहते देने वाले हों लेकिन उद्योग के विकास को झटका लगा है। आईआईपी ग्रोथ में गिरावट दर्ज की गई है। मई में आईआईपी ग्रोथ घटकर 1.7 प्रतिशत तक पहुंच गई है। मई में आये 1.7 प्रतिशत आंकड़े तो आईआईपी ग्रोथ नवंबर 2016 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आने की तस्वीर बता रहे हैं। इसके विपरीत, अप्रैल में आईआईपी ग्रोथ 2.8 प्रतिशत रही थी। अप्रैल में भी आईआईपी ग्रोथ 3.1 प्रतिशत से संशोधित कर 2.8 प्रतिशत मानी गई है। यह सब कहीं नीति पर पुनर्विचार का संकेत देता है। एक ऐसी नीति की आवश्यकता है, जिससे महंगाई कम और औद्योगिक विकास तेज़ हो।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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