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मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने गुरूवार 13 जुलाई 17 को एक के बाद एक कई ट्वीट किए। उन्होंने कहा कि यदि कसाब को जिंदा पकड़कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया था तो आनंदपाल का एनकाउंटर क्यों किया गया। सजा देना न्यायालय का काम है। पुलिस ने आनंदपाल को सजा ए मौत क्यों दे दी। उन्होंने लिखा कि राजस्थान में आनन्द पाल के फ़र्ज़ी एनकाउण्टर पर सीबीआई की माँग मानने में भाजपा को क्यों एतराज़ है? उस पर अपराधिक प्रकरण थे तो भी उसे न्याय पालिका के सामने जाने का हक़ भाजपा सरकार कैंसे छीन सकती है! वो अधिकार तो आतंकवादी कसाब को भी मिला था।
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वसुंधरा राजे ने खेला था राजपूत कार्ड
आनंदपाल एनकाउंटर मामले में वसुंधरा राजे सरकार का मास्टर स्ट्रोक ही दांव पर लग गया है। सरकार ने मामले की सीबीआई जांच को लेकर चल रहे आंदोलन में बातचीत के लिए डीजी जेल एवं राजपूत आईपीएस अफसर अजीत सिंह शेखावत को भेजा था। सोचा था कि राजपूत समाज में संदेश जाएगा कि वे ही राज्य के नए डीजीपी बनाए जा रहे हैं। उनकी सफलता से सरकार में एक दमदार राजपूत चेहरा उभरेगा। उन्होंने मौके पर जाकर कुछ राजपूत नेताओं से बातचीत शुरू भी की, लेकिन शाम होते-होते सांवराद में जुटी भीड़ बेकाबू हो गई और हिंसा पर उतर आई। इस नए घटनाक्रम के बाद केवल अजीत सिंह के लिए चुनौती बढ़ गई है, बल्कि सरकार के सामने भी यह संकट खड़ा हो गया है।
नॉन कंट्रोवर्शियल अफसर माने जाते हैं अजीत सिंह
मोस्ट वांटेड आनंदपाल के एनकाउंटर की सीबीआई जांच को लेकर आंदोलन पर उतरे राजपूत और रावणा राजपूत समाज के संगठनों से बातचीत और समझाइश की जिम्मेदारी जब सरकार ने डीजी जेल अजीत सिंह शेखावत को सौंपी तो यह सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा था, क्योंकि अजीत सिंह की छवि नॉन कंट्रोवर्शियल, ज्यूडिशियल माइंडसेट और सख्त अफसर की है। उनकी जिम्मेदारी ऐसे मौके पर और भी महत्वपूर्ण हो गई है, जब यह आंदोलन अब उग्र हो चुका है।
DGP सीट के प्रमुख दावेदार हैं
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