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मनोज वाजपेयी सहित प्रांतीय संरक्षक सुधीर नाईक ने उज्जैन-इंदौर संभाग के जिला अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिवों को बताया कि 14 जुलाई को हमारी कमेटी ने 21 सूत्री मांगों को लेकर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव को ड्रॉफ्ट सौंपा है।
इसमें मुख्य मांग सातवें वेतनमान में विसंगति को मिटाना है, जिसकी वजह से लिपिकों को समकक्ष अन्य कर्मचारियों से कम वेतन मिल रहा है। बताया कि साल 1985 में सरकार ने मिनी पीएससी के जरिये निम्म श्रेणी लिपिक और सहायक शिक्षकों की भर्ती की थी।
परीक्षा एक थी और इसके लिए किया आवेदन भी एक। फर्क आवेदन में सिर्फ इतना था कि जिन्होंने हिंदी मुद्रलेखन परीक्षा पास की थी वे निम्न श्रेणी लिपिक के लिए पात्र थे और शेष सभी सहायक शिक्षक के लिए। विडंबना देखिये दोनों एक वेतनमान से भर्ती हुए थे, लेकिन आज सहायक शिक्षक को तकरीबन 51 हजार स्र्पए वेतन मिल रहा है और लिपिक को 32 हजार स्र्पए के आसपास।
अनुशंसा की है कि सहायक ग्रेड-3 संवर्ग को ग्रेड पे 2400 स्र्पए किया जाए। प्रथम समयमान की पे-ग्रेड 2800 स्र्पए, द्वितीय समयमान की 3200 स्र्पए और तृतीय समयमान वेतन की पे-ग्रेड 3600 स्र्पए की जाए। संचालन जिला अध्यक्ष बीएल पालीवाल ने किया।
विभाजन के बाद से सिर्फ कर्मचारी की मौत पर हुई नई भर्ती
विभागों में लिपिकों के खाली पड़े पद और नई भर्ती पर लगी रोक पर अध्यक्ष वाजपेयी ने कहा कि मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ का विभाजन होने के बाद से सिर्फ कर्मचारी की मौत पर ही नई भर्ती हुई है। विभाजन से पहले प्रदेश में 2.40 लाख लिपिक थे, विभाजन के वक्त 1.40 लाख थे और अब सिर्फ 65 हजार रह गए हैं। हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में पूरा ऑनलाइन कार्य हम लिपिक बिना किसी विभागीय कम्प्यूटर ट्रेनिंग के कर रहे हैं।