
विपक्ष हो सत्तारूढ़ दल, कई नेता सार्वजनिक जीवन में अपनी उग्र टिप्पणियों और अन्य कार्यकलापों के कारण चर्चा में रहते हैं, लेकिन रामनाथ कोविंद को ऐसे किसी भी बयान के लिए नहीं याद किया जाता, जो उनकी योग्यताओं में से एक है। इसके बावजूद समाज में कई मोर्चों पर मौजूद तनाव का असर उन पर भी साफ दिखता हैं। इस बार चुनाव के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यूपीए उम्मीदवार के समर्थन में जो टिप्पणी की थी उसका अर्थ दूर तक निकल रहा है।
उनकी टिप्पणी थी कि इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में संकीर्ण, विभाजनकारी और सांप्रदायिक नजरिए के खिलाफ एक लड़ाई लड़ी जा रही है। सत्तारूढ़ एनडीए ने इस टिप्पणी को नजरअंदाज कर इस चुनाव के नतीजों को ऐतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछला चुनाव राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 69 प्रतिशत मतों से जीता था इस बार एनडीए का प्रयास था कि उसके प्रत्याशी को पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा मत मिलें। ऐसा होगा भी, क्योंकि इस चुनाव में ऐन मौके पर क्रास वोटिंग जैसे कुछ नाटकीय बिंदु भी आ जुड़े हैं। जैसे यूपी में समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने अपनी पार्टी के आधिकारिक रुख के विपरीत जाते हुए अपने समर्थकों से कोविंद को समर्थन देने को कहा, तो त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस के विधायकों ने मीरा कुमार के विरोध में मतदान किया।
बिहार में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव क्रमश: रामनाथ कोविंद और मीरा कुमार को समर्थन देने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। जाहिर है, इस चुनाव के नतीजे तय हैं, फिर भी समाज में मौजूद विभाजन का असर इस पर साफ महसूस किया जा सकता है। नये राष्ट्रपति से नई इबारत लिखने की अपेक्षा देश कर रहा है। पक्ष और प्रति पक्ष ने चयन का जो मापदंड रखा था, उससे देश को मिला संदेश, एक तरफा है। इस एक तरफा संदेश के पीछे छिपे संदेश के मायने बदलने और समग्र समाज को राष्ट्रोत्थान का संदेश देने में 14वे राष्ट्रपति सफल हो।
शुभकामना।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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