
बैंकिंग क्षेत्र का अनुमान है कि अभी देश के 99 प्रतिशत परिवारों में एक न एक बैंक खाता जरूर है। 20 करोड़ से ज्यादा नए खाते प्रधानमंत्री जन-धन योजना के तहत ही खुले हैं। आधुनिकीकरण की मुहिम में सारे बैंक ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन ट्रांजैक्शन पर जोर दे रहे हैं। इससे लेनदेन में बड़ा परिवर्तन हुआ और लोगों की सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन सुविधाओं के साथ मुसीबतें भी आई हैं। पिछले कुछ वर्षों में बैंक खातों से रकम का हेरफेर, एटीएम से अपने आप पैसे निकलने और बिना उपभोक्ता की जानकारी के उसके बैंक खाते की रकम गायब हो जाने की शिकायतें लगातार आ रही हैं। इनमें कुछ समस्याएं तकनीकी खामियों से भी आती हैं, लेकिन ज्यादातर गड़बड़ियां संगठित रूप से सक्रिय साइबर अपराधी करते हैं।
देश में डिजिटल कारोबार के हिसाब से नागरिक अब भी पर्याप्त शिक्षित और जागरूक नहीं हैं। इससे एटीएम फ्रॉड, क्लोनिंग के जरिए क्रेडिट कार्ड से बिना जानकारी धन-निकासी और बड़ी कंपनियों के अकाउंट व वेबसाइट हैक करके फिरौती वसूली की घटनाएं रोज हो रही हैं। पिछले साल हिताची पेमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड में मैलवेयर वायरस के हमले के कारण देश के कुछ बैंकों के 32 लाख डेबिट कार्ड प्रभावित हुए थे. जिन्हें आनन-फानन में बदलना पड़ा। देश के बाहर से हो रहे साइबर हमलों ने बैंक ग्राहकों की चिंता और बढ़ा दी है। वानाक्राई जैसे रैंसमवेयर हमलों के बाद तो कई लोग ऑनलाइन ट्रांजैक्शन से हाथ खींचने के बारे में सोचने लगे थे। ऐसे में रिजर्व बैंक ने जमा रशि की सुरक्षा को लेकर एक बड़ा आश्वासन दिया है। इसके बावजूद संगठित सायबर गिरोह के द्वारा अपराध हो रहे हैं,इन पर लगाम जरूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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