
बसपा के सूत्रों के मुताबिक इस कदम के बाद से बसपा कैडर सक्रिय हो गया है। बसपा की कोशिश ये है कि मायावती के इस्तीफे के कदम को इस तरह पेश किया जाए कि दलितों में लगे कि माया ने भाजपा में उनके खिलाफ हो रहे अत्याचार के विरोध में अपना इस्तीफा दे दिया। इस दौरान माया ने भाजपा पर जमकर हमला बोला। बसपा नेता ने आरोप लगाया था कि भाजपा सरकार के कार्यकाल में देश में दलितों, गरीबों का उत्पीड़न बढ़ा है। इसके साथ ही मायावती ने सहारनपुर का मुद्दा राज्यसभा में उठाया।
मायावती के शब्द गांव-गांव तक पहुंचाने की तैयारी
उनके अनुसार सहारनपुर की घटना सोची समझी साजिश का नतीजा थी। वहां पर एक दलित को फंसाया गया है। दलितों को जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी गई। यूपी में दलितों पर अत्याचार हो रहा है। बसपा कैडर इस बात को सूबे के गांव-गांव तक पहुंचाने की तैयारी कर चुके हैं। मायावती ने जिस तरह राज्यसभा में बोला उसे सोशल मीडिया आदि पर वीडियो के जरिए दलितों के बीच पहुंचाकर यह संदेश देने की कोशिश है कि मायावती ही दलितों की सच्ची हितैषी हैं। दलितों की लड़ाई लड़ने के लिए बसपा प्रमुख ने अपने पद की परवाह नहीं की।
सभी प्रमुख नेताओं की बुलाई गई है बैठक
23 जुलाई को बसपा सुप्रीमो ने पार्टी के राज्यसभा सांसदों, विधायकों, जोन इंचार्ज, जिलाध्यक्ष समेत पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं की मीटिंग बुलाई है। जिसमे आगे की रणनीति तय होगी। गौरतलब है कि माया ने हाल में राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। उनका आरोप था की दलितों से जुड़े मुद्दे पर उनको राज्यसभा में बात रखने का मौका नहीं मिल रहा है। माया का इस्तीफा गुरुवार को स्वीकार होने के बाद मायावती ने दिल्ली में ही रविवार को उत्तर प्रदेश के साथ ही दूसरे राज्यों के प्रमुख पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है।
इस्तीफे के बाद गर्माया राजनैतिक माहौल
दलित हित में सांसदी कुर्बान करने की छवि को उभारने के लिए पार्टी सड़कों पर भी संघर्ष करेगी। आंदोलन से आमतौर पर दूर रहने वाली बसपा बदले हालात में संघर्ष की राह पकड़ती दिख रही है। विधानसभा में भी बसपा आक्रामक तेवर अपनाए हुए है। गौरतलब है कि खिसकते दलित वोटबैंक के कारण ही पार्टी का लोकसभा और विधानसभा चुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन रहा है। मायावती ने मंगलवार को राज्यसभा से अपना इस्तीफा दे दिया था। जिसके बाद देश की राजनीति का माहौल अचानक से गर्म हो गया था।