राकेश दुबे@प्रतिदिन। फर्जी जाति प्रमाणपत्र की वैधता के मसले पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला सामान्यतया तो सीधा-सादा है, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट के इस संबंध में दिए गए फैसले के कारण इसका महत्व अहम हो गया है। बाम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक नौकरी में रह जाता है और आगे चलकर उसका जाति प्रमाण पत्र फर्जी या नकली पाया जाता है तो उसकी नौकरी बनी रह सकती है। बाम्बे हाईकोर्ट यह फैसला उलट गया है। अब ऐसे मामलों में नौकरी या प्रवेश रद्द होंगे।
सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को उलटते हुए कहा कि फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर हासिल की गई नौकरी या प्रवेश किसी भी सूरत में मान्य नहीं हो सकता। इस बारे में कोई आंकड़ा भले न हो, लेकिन फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाने के मामले समय-समय पर सामने आते रहते हैं। इससे लगता है कि छोटे पैमाने पर ही सही, लेकिन यह एक प्रवृत्ति विकसित होती जा रही है।
अब तक बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला ऐसे तमाम मामलों में फर्जीवाड़े के लिए ढाल के रूप में इस्तेमाल होता था। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आ जाने के बाद अब इस बात की आशंका खत्म हो गई है। देश में नौकरियों की जो हालत है उसमें हर जरूरतमंद किसी भी उपाय से ढंग की नौकरी हासिल करने की कोशिश करे, यह नितांत स्वाभाविक है। प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में बढ़ी असुरक्षा ने सरकारी नौकरी का आकर्षण बढ़ा दिया है। जरा-सी भी सामाजिक हैसियत रखने वाला पारिवार का मुखिया और बीडीओ आदि की मिलीभगत से फर्जी जाति प्रमाणपत्र बनवाने की जो कोशिश चल रही हैं रुकेंगी यह मानना मुश्किल है।
यहाँ ऐसे मामलों में होने वाली जांच की प्रामाणिकता पर भी प्रश्नचिंह है। सारी जांच कुछ व्यक्तियों के बयान या उनकी गवाहियों पर टिकी होती है, ऐसे में कैसे मान लिया जाए कि कौन सच बोल रहा है? इन परिस्थितियों में यह कह पाना कि जांच रिपोर्ट कितनी सही है, यह तय करना भी आसान नहीं, बहुत मुश्किल है। फर्जी जाति प्रमाण पत्र किसी भी स्थिति में मान्य नहीं हो सकते। चाहे जैसे भी हो, इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना ही होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के प्रकाश में सरकार के साथ समाज के प्रयास भी जरूरी हैं,जिससे जरुरतमंदों को न्याय मिल सके।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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