
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर का निर्माण ही जॉन स्टुअर्ड ने कराया था। जिसने मंदिर के शिखर के पास देवी देवताओं के साथ अपनी मूर्ती भी लगा दी। बाद में उन्होंने यहां का स्वामित्व क्षेत्र के रहने वाले निषाद समाज के युवक को सौंप दी। घोड़े पर सवार जॉन स्टुअर्ड की मूर्ति भगवत दास घाट पर मौजूद शिव मंदिर की दीवार पर दूर से ही दिखाई देती है।
इस अष्टकोणीय मंदिर के बाहरी दीवार पर भगवान गणेश, मां दुर्गा, मां काली, भैरव बाबा, हनुमान जी की मूर्ति भी इस अंग्रेज शासक के साथ मौजूद है। कई बार मंदिर में अंग्रेज की प्रतिमा को गलत बताते हुए लोगों ने इस तोड़ने की भी कोशिश की लेकिन प्रतिमा को पूरी तरह से हटाए जाने के प्रयास सफल नहीं हुए। जब भी मंदिर का सौंदर्यीकरण होती है तो अंग्रेज शासक की मूर्ती का भी रंग रोगन किया जाता है।
मंदिर के पुजारी नारायण गुरु महापात्र ने बताया कि ये मंदिर कब बना ये तो पता नहीं है लेकिन लोगों का मानना है कि इस मंदिर का निर्माण जॉन स्टुअर्ड ने कराया, जो शायद कानपुर के प्रभारी रहे हों। हो सकता है भोले बाबा ने उनकी किसी मंशा को पूरा कर दिया हो। जिससे उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करा दिया।