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अभी तो सबसे बड़ा नुकसान कैलाश-मानसरोवर यात्रा की सारी तैयारियां कर चुके तीन–चार सौ तीर्थयात्रियों का हुआ है, जिनका पहला जत्था 19 जून को ही यात्रा रुक जाने के बाद कई दिन सीमा पर फंसा रहा और आखिरकार उसे घर लौटना पड़ा। 2015 से शुरू हुआ मानसरोवर यात्रा का नाथुला रूट दोनों देशों के राजनेताओं और राजनयिकों के कौशल का परिचायक माना जाता रहा है। अचानक इसके बंद होने की स्थिति कैसे बन गई, इस बारे में ठंडे दिमाग से सोचने की जरूरत है।
नाथुला सिक्किम, तिब्बत और भूटान को जोड़ने वाला एक बहुत ऊंचा दर्रा है, जो उत्तर की तरफ तिब्बत की मनोरम चुंबी घाटी में खुलता है। ताजा बताबाती चीन द्वारा बनाई जा रही एक सड़क से शुरू हुई है, जिसके बारे में भूटान का दावा है कि यह उसके इलाके से होकर गुजर रही है। भूटान के सुरक्षा मामलों में भारत का भी दखल रहता है। चीन के साथ भूटान के राजनयिक रिश्ते लंबे अर्से से ठप पड़े हैं, लिहाजा भूटान को चीन से जुड़ी अपनी शिकायतें भी भारत के मार्फत ही उस तक पहुंचानी पड़ती हैं। इसके चलते नाथुला के मामले में गुत्थी हर बार कुछ ज्यादा ही उलझ जाती है।
यह भी विचार का विषय है कि ताज़ा उलझाव में भारत की कोई भूमिका नहीं है। पिछले एक-डेढ़ वर्षों से, मोटे तौर पर मानसरोवर यात्रा का नाथुला रूट खुलने के बाद से ही भारत को लेकर चीन की बेचैनियां बढ़ती जा रही हैं। जिसके कारणों में अरुणाचल प्रदेश में दलाई लामा का आना-जाना और उत्तर पूर्व में तिब्बत के नजदीक भारत की सामरिक और सिविल कंस्ट्रक्शन की गतिविधियां तेज होने से है। इसका दूर का एक पहलू पश्चिम में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निकटता से भी जुड़ा है, लेकिन नाथुला के ट्रिगर पॉइंट के रूप में इन कारकों की कोई विशेष भूमिका नहीं है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से भी गहरे रिश्ते हैं, दोनों नेता आपसी बातचीत से हालात को काबू में ला सकते हैं।प्रधानमंत्री को अपने विदेश दौरे के साथ पडौसियों की और भी नजर घुमाना चाहिए। बेवजह की बताबाती हालात बिगाड़ भी सकती है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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