
दरअसल, बसपा की महिला नेता रामबाई ठाकुर यहां पर स्वयंभू लोकायुक्त हो गईं हैं। रिश्वत के मामलों में छापामार कार्रवाई करतीं हैं। पीड़ित को उसकी रिश्वत वापस करवातीं हैं। मीडिया में सुर्खियां बटोर लेतीं हैं और अफसरों पर दवाब बना रहता है। रिश्वतखोरी के खिलाफ बनाए गए सभी कानून यहां लागू नहीं होते। प्रशासन भी चुपचाप सबकुछ देखता रहता है।
ताजा मामला शनिवार दोपहर का है। कुछ बेरोजगार युवा जिपं उपाध्यक्ष के घर शिकायत लेकर गए थे कि अधिकारी उनसे आवेदन जमा कराने के एवज में रिश्वत मांग रहा है। ठाकुर ने युवाओं से कहा कि वे अधिकारी को रुपए दें और अपना आवेदन कराएं और जैसे ही आवेदन जमा हो जाए उन्हें सूचना दें।
युवाओं ने वैसा ही किया और सूचना मिलते ही जिपं उपाध्यक्ष जिला ग्रामोद्योग कार्यालय पहुंच गईं। महिला नेता जैसे ही असिस्टेंट मैनेजर कोलारकर के कक्ष में पहुंची वो हड़बड़ा गया। उसने कान पकड़कर माफी मांगी और सबके पैसे भी वापस कर दिए। समाचार लिखे जाने तक नामदेव कोलारकर के खिलाफ कोई विभागीय कार्रवाई नहीं हुई थी।
पहले भी की है इसी तरह की कार्रवाई
फरवरी 2017 में भी रामबाई ठाकुर ने इसी तरह की कार्रवाई की थी। बांसाकला निवासी बुजुर्ग महिला उनके पास पहुंची। पीड़िता अपनी बहू दीपा पटैल का विकलांग सर्टिफिकेट बनवाने पहुंची थी। कार्यालय के कर्मचारी प्रदीप नामदेव ने सर्टिफिकेट बनवाने के बदले चार हजार रुपए की मांग की और उसके बाद भी उसका प्रमाण पत्र नहीं बनाया। रामबाई ठाकुर ने बजाए पीड़िता को लोकायुक्त या प्राधिकृत ऐजेंसी तक ले जाने के खुद ही शिकायत दर्ज कर ली और जांच शुरू कर दी। वो वृद्ध महिला को लेकर कलेक्ट्रेट परिसर में संचालित दिव्यांगों के स्वास्थ्य केंद्र धर्मा सेंटर जा पहुंची और महिला से उस कर्मचारी को पहचानने के लिए कहा तो वह सामने ही मौजूद था। पहले तो उस कर्मचारी ने रिश्वत लेने की बात छिपाई, लेकिन बाद में उसने गलती स्वीकार कर ली। जब उससे रुपए वापस करने के लिए कहा तो उसने कहा कि उसके पास अभी रुपए नहीं हैं। समस्या का समाधान करने के लिए वहां के अन्य कर्मचारियों ने चार हजार रुपए एकत्रित कर उस कर्मचारी को दिए और उसने वह रुपए बुजुर्ग महिला को वापस लौटाए। कुल मिलाकर रामबाई ने खुद शिकायत दर्ज की, खुद जांच की, खुद सुनवाई की और खुद ही फैसला सुना दिया।
विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहीं हैं रामबाई
जिला पंचायत की उपाध्यक्ष रामबाई ठाकुर पहले कांग्रेस में हुआ करतीं थीं। इन दिनों बसपा में हैं। कहा जा रहा है क वो पथरिया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहीं हैं। जनता के बीच लोकप्रिय होने के लिए वो इस तरह की कार्रवाई करतीं हैं। कलेक्टर एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी शायद अपने अधीनस्थ को बचाने के लिए भ्रष्टाचार एवं रिश्वत रोकने वाले कानूनों के तहत कार्रवाई करने की प्रक्रिया ही शुरू नहीं करते।
प्रशासनिक मशीनरी पर दवाब बनाने का खेल
कहा यह भी जा रहा है कि रामबाई ठाकुर की इस तरह की कार्रवाईयां प्रशासनिक मशीनरी पर दवाब बनाने का खेल है। इस तरह से वो एक तीर से 2 निशाने साध लेतीं हैं। एक तरफ पीड़ितों को रिश्वत का पैसा वापस दिलाकर मीडिया की सुर्खियां बटोर लेतीं हैं और दूसरी तरफ अधिकारियों पर उनका दवाब बन जाता है जो राजनीति में सफल होने के लिए अनिवार्य है।
जेल जा चुकी हैं रामबाई
अधिकारियों पर दवाब बनाने की राजनीति के चलते रामबाई ठाकुर जनवरी 17 में जेल भी जा चुकीं हैं। उन पर बिजली कंपनी के एक अधिकारी को जाति सूचक अपमान करने और सरकारी काम में बाधा डालने का मामला अक्टूबर 16 में पहले दर्ज हुआ था। 4 माह तक वो सरकारी दस्तावेजों में फरार बताई जातीं रहीं। बाद में उन्हे उन्हीं के घर से गिरफ्तार कर लिया गया।
बिजली अधिकारी को दी थी जान से मारने की धमकी
17 फरवरी 17 को चिरौला और असलाना के किसान रामबाई के घर पहुंचे और उन्होंने बताया कि उन लोगों का बिल जमा है, लेकिन इसके बाद भी बिजली विभाग सप्लाई चालू नहीं कर रहा है, जिससे उनकी चने की फसल सूूखने की कगार पर है। इसी बात पर रामबाई ने नरसिंहगढ़ में पदस्थ जेई नीलेश उईके को फोन पर लाइन चालू करने के लिए कहा था। इस दौरान काफी चर्चा हुई, जिसमें रामबाई ने जेई से ये भी कहा कि यदि वे किसानों को परेशान करेंगे तो वे उन्हें वहीं आकर मारेंगी। इसके बाद श्री उईके ने पुलिस में आवेदन दिया और पुलिस ने रामबाई के खिलाफ 21 फरवरी 17 को धारा 506, 507, 297, 353, 3-1 द, 3-2-5 क, एससीएसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था।
रामबाई गलत है तो सही क्या है
भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहां किसी भी व्यक्ति को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। फिर चाहे वो पार्षद हो या प्रधानमंत्री। भ्रष्टाचार की शिकायतों पर नेताओं को जनता की मदद करनी चाहिए परंतु इसके लिए निर्धारित नियमों का पालन करते हुए। सही यह होता कि वो लोकायुक्त को इन मामलों की जानकारी देतीं और लोकायुक्त टीम को अपने साथ ले जाकर कार्रवाई करवातीं, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। रिश्वतखोर अधिकारी को खुद पकड़ा, रिश्वत वापस करवाई और माफ कर दिया। गजब तो यह है कि रिश्वतखोरी की चश्मदीद गवाह होने के बावजूद उन्होंने वरिष्ठ स्तर पर कोई शिकायत नहीं की। क्या यह संदेह करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं है कि इस तरह की छापामार कार्रवाई करने के बाद महिला नेता संबंधित भ्रष्ट अधिकारी से सांठगांठ कर लेतीं हैं।