क्या G-20 घरेलू बाज़ार खोल सकेगा

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। और जी-20 असहमतियों को रेखांकित करते हुए उम्मीद के माहौल में समाप्त हुआ, सवाल अमेरिकी असहमति के बाद इन देशों के घरेलू बाजार एक दुसरे के लिए खुल सकेंगे । एक तरफ दुनिया भर से आए भूमंडलीकरण विरोधी कार्यकर्ता सड़कों पर इसका विरोध कर रहे थे तो दूसरी तरफ भारत और चीन जैसे बड़े देशों के बीच सीमा पर उत्पन्न तनाव माहौल की सहजता को लेकर संदेह पैदा कर रहा था। राष्ट्रपति ट्रंप की अगुवाई में पर्यावरण और संरक्षणवाद जैसे मसलों पर अमेरिका का नया रुख इस चिंता का कारण बना हुआ था कि कहीं यह सम्मेलन जी-20 की आगे की राह रोकने वाला न साबित हो जाए।

इन सारी नकारात्मकताओं को किनारे करते हुए यह दो दिवसीय सम्मेलन न केवल गंभीर विचार-विमर्श का केंद्र बना बल्कि इसने घोर निराशा के माहौल में कुछ आस की किरणें भी दिखीं। भारत और चीन के गहराते सीमा विवाद के बीच पहले ही साफ हो गया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच कोई औपचारिक मुलाकात नहीं होगी। मगर अनौपचारिक मुलाकात में दोनों नेता पूरी गर्मजोशी से मिले। इतना ही नहीं, ब्रिक्स देशों की अनौपचारिक बैठक के बहाने दोनों ने एक-दूसरे की तारीफ के मौके भी ढूंढ लिए। यह शिखर सम्मेलन जाने अनजाने दोनों बड़े एशियाई देशों के बीच तनाव में उल्लेखनीय कमी लाने में सफल रहा।

अवसर का लाभ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने भी लिया उनके बीच की मुलाकात भी खासी चर्चित और फलप्रद रही। दोनों नेता सीरिया में युद्धविराम पर सहमत हो गए। हालांकि यह युद्धविराम कब तक चलता है और कितना प्रभावी होता है, उसे लेकर कई तरह के सवाल हैं, लेकिन फिर भी मौजूदा माहौल में यह एक सकारात्मक शुरुआत तो है ही। मगर इन सबके बावजूद भविष्य में जी-20 की भूमिका को लेकर तत्काल कोई राय नहीं बनाई जा सकती। जी-20 की सफलता का सबसे बड़ा आधार यही 2008 की मंदी ने सभी संबद्ध देशों को एक विषय दे दिया था। ये दुनिया को वैश्विक मंदी के चंगुल से मुक्त कराने में लगे, सबके प्रयासों की दिशा भी एक ही थी कि तमाम देश अपने घरेलू बाजार को एक-दूसरे के लिए खोलें।

इसके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ का ऐसा कड़ा स्टैंड ले लिया है जो अन्य देशों को भी अपनी चिंता घरेलू बाजार तक सीमित रखने को प्रेरित कर रहा है। पेरिस जलवायु समझौते पर भी वे टस से मस नहीं हुए। बहरहाल, सम्मेलन ने फिलहाल अमेरिकी असहमति को स्वीकार करते हुए साझा बयान की राह भले निकाल ली हो, असली चुनौती इन दोनों ही मसलों पर अमेरिका को अपने रुख में नरमी लाने के लिए तैयार करने की है|
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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