भोपाल। सरकारी अस्पतालों में प्रशासनिक काम देख रहे डॉक्टरों से अब ये जिम्मेदारी वापस लेकर आईएएस अफसरों और मैनेजर्स को देने की कवायद शुरू हो गई है। दरअसल इसके पीछे एक कारण यह है कि डॉक्टर अपने मूल काम डॉक्टरी को छोड़ फाइलों से लेकर दवा-उपकरण की खरीदी और बिल्डिंग की मरम्मत में ही उलझे रहते हैं। वहीं दूसरा कारण इंदौर के एमवाय अस्पताल में 22 जून की घटना भी है, जिसमें ऑक्सीजन सप्लाई फेल होने के कारण 17 मरीजों की मौत हो गई थी। इसके बाद ही प्रदेश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों और जिला अस्पतालों में सरकार जल्द ही आईएएस, एसएएस या हॉस्पिटल मैनेजमेंट में दक्ष अफसरों को नियुक्त करने की तैयारी कर रही है। इस व्यवस्था के बाद अब डॉक्टरों से केवल डॉक्टरी करवाई जाएगी, जबकि प्रबंधकीय कामों के लिए अलग से अफसर या मैनेजर रखे जाएंगे।
भोपाल में ऐसी व्यवस्था
हमीदिया अस्पताल : डॉ. दीपक मरावी अधीक्षक हैं। अस्पताल में मरीजों को देखने का समय नहीं, लेकिन प्राइवेट प्रेक्टिस करते हैं।
जेपी अस्पताल : डॉ. आईके चुघ सिविल सर्जन हैं। वे रोजाना ओपीडी में बैठते हैं। अस्पताल में सर्जरी वाले दिन मरीजों की सर्जरी भी करते हैं।
काटजू अस्पताल : दो दिन पहले ही अधीक्षक पद पर डॉ. कीर्ति डाले की नियुिक्त हुई है। इसके पहले लंबे समय से डॉ. आशा चौधरी पदस्थ थीं। वे न तो मरीजों को देखती थीं न ही ओपीडी में बैठती थीं।
कौन-कैसे कर रहा काम
अधीक्षक: मेडिकल कॉलेज के अधीन अस्पताल की प्रशासनिक व्यवस्था का जिम्मा। डॉक्टरों से लेकर नर्सिंग स्टॉफ के ड्यूटी चार्ट और रोस्टर की निगरानी। निर्माण, मरम्मत, दवा-उरकरण खरीदी के काम भी इनकी देखरेख में होते हैं। इमरजेंसी से जुड़ी व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी है। ये डीन के अधीन काम करते हैं।
सिविल सर्जन: जिला अस्पताल और शहर की सिविल डिस्पेंसरी इनके नियंत्रण में रहते हैं। जिला अस्पताल के ड्यूटी रोस्टर, प्रशासनिक काम, डॉक्टर-स्टाफ तैनाती, दवा खरीदी, नए निर्माण और मेडिकल बोर्ड का कामकाज संभालना इनके जिम्मे होता है। ये जेडी और सीएमएचओ के अधीन काम करते हैं।
विभागाध्यक्ष: मेडिकल कॉलेजों के अस्पतालों में विभागाध्यक्ष। एचओडी संबंधित विभाग की टीचिंग, मरीजों के इलाज, ओपीडी जैसे मामलों की देखरेख। रोजमर्रा के कामकाज में ज्यादा दखल नहीं। टीचिंग पर जोर होता है।
ट्रेनिंग केवल दिखावा, टारगेट पर फोकस ज्यादा
अस्पताल प्रबंधन के लिए अधीक्षक और सिविल सर्जन की ट्रेनिंग केवल दिखावा बन गई है। ट्रेनिंग सेंटर में नर्सिंग स्टॉफ का प्रशिक्षण ज्यादा होता है। भोपाल में प्रदेश स्तर पर होने वाली ज्यादातर बैठकों में जोर सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन पर रहता है। टारगेट पर फोकस रहता है।
ताई द्वारा सीएम को लिखी चिट्ठी के बाद बढ़ी सरगर्मी
एमवाय अस्पताल में मरीजों की मौत के बाद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चिट्ठी लिखी थी। इसमें डॉक्टरों को प्रशासनिक काम से मुक्त कर अस्पताल प्रबंधन व प्रशासन की कुशल और अनुभवी अस्पताल प्रबंधक की सेवाएं लेने पर जोर दिया था।
ऐसा होगा बदलाव:
सरकार ने सरकारी अस्पतालों में प्रबंधन की व्यवस्था बदलने का मन बना लिया है। अस्पतालों के प्रबंधकीय कार्यों के लिए आईएएस, राप्रसे या हॉस्पिटल मैनेजमेंट विशेषज्ञ तैनात होंगे। इन्हें सीधे अधीक्षक और सिविल सर्जन जैसे पद पर बतौर प्रशासक पदस्थ किया जाएगा।
व्यवस्था के बदलाव पर कैबिनेट में चर्चा हो चुकी है, नया सेटअप जल्द लागू होगा
-----------
इंदौर के एमवाय अस्पताल की घटना की जांच चल रही है। ये सही है कि अस्पतालों में प्रशासकीय कामों की व्यवस्था में बदलाव होगा। कैिबनेट बैठक में इस पर चर्चा हो चुकी है। नए सेटअप पर विचार चल रहा है, जिसे जल्द लागू करेंगे।
शरद जैन, राज्य मंत्री, चिकित्सा शिक्षा(स्वतंत्र प्रभार)