
महात्मा की तलाश में निकले थे महात्मा गांधी मिल गए
यहां बात हो रही है भारत के 7वें राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह की। पिता ने उनका नाम जरनैल सिंह रखा था। परिवार के लोग उन्हे संत पुरुष बनाना चाहते थे। आध्यात्मिक ज्ञान के लिए वो घर से निकले। रास्ते में एक महात्मा मिल गए और उनके साथ हो लिए। अब जरनैल सिंह महात्मा गांधी के साथी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हो गए थे। जरनैल सिंह ने मात्र 15 वर्ष की आयु में ही ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध काम करना शुरू कर दिया था। 1938 में उन्होंने प्रजा मंडल नामक एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया, जो भारतीय कॉग्रेस के साथ मिल कर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन किया करती थी। जिस वजह से उन्हें जेल भेज दिया गया और उन्हें पांच वर्ष की सजा सुनाई गई। इसी दौरान उन्होंने अपना नाम बदलकर जेल सिंह (Jail Singh) रख लिया।
माथे पर लगा पहला दाग: खालिस्तान की मांग
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ज्ञानी जैल सिंह को पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्यों के संघ का राजस्व मंत्री बना दिया गया। 1951 जैल सिंह जी कृषि मंत्री बन गए। इसके अलावा वे 1956 से 1962 तक राज्यसभा के भी सदस्य रहे। 1969 में जेल सिंह जी के राजनैतिक संबध इंदिरा गाँधी से काफी अच्छे हो गए थे। तत्पश्चात 1972 में वे पंजाब के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए। 1977 तक जेल सिंह जी इस पद पर कार्यरत रहे। इसी दौरान पंजाब में खालिस्तान की मांग उठी और ज्ञानी जेल सिंह इस आग को पूरे पंजाब में फैलने से रोक नहीं पाए।
इंदिरा ने पंजाब से हटाया, लेकिन सम्मान के साथ
इंदिरा गांधी ने बड़ी ही चतुराई के साथ ज्ञानी जेलसिंह को पंजाब से दिल्ली बुला लिया। लोकसभा चुनाव लड़वाया और देश का गृहमंत्री बना दिया। इस तरह इंदिरा गांधी ने पंजाब को खालिस्तान की आग में जलने से रोकने की कोशिश की और ज्ञानी जेल सिंह की योग्यता का पूरा उपयोग भी किया।
इंदिरा कहें तो झाडू भी लगाने को तैयार

जेल सिंह के सहारे आॅपरेशन ब्लू स्टार
इंदिरा गांधी एक चतुर राजनीतिज्ञ थीं। उन्होंने ज्ञानी जेल सिंह के राष्ट्रपति बनते ही आॅपरेशन ब्लू स्टार की तैयारियां शुरू कर दीं। इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति भवन जाकर ज्ञानी जेल सिंह से मुलाकात की और 1 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू कर दिया गया जो लगातार 8 जून तक चला। इस दौरान भारत की सेना जूते पहनकर स्वर्ण मंदिर में घुस गई। पंजाब में इस आॅपरेशन का जबर्दस्त विरोध हुआ। लोग आश्चर्यचकित थे कि ज्ञानी जेल सिंह जो खुद एक सिख हैं, ने इस आॅपरेशन के आदेश कैसे दे दिए।
1984 के सिख विरोधी दंगे और बेबस राष्ट्रपति

राजीव गांधी के खिलाफ पॉकेट वीटो का उपयोग
इसके बाद राजीव गांधी और ज्ञानी जेल सिंह के बीच तनाव शुरू हो गया। ज्ञानी जेल सिंह ने राजीव गांधी सरकार की ओर से भेजे जाने वाले विधेयकों को रोकने लगे। इस दौरान उन्होंने 'पॉकेट वीटो' का उपयोग किया। इस विशेषाधिकार का उपयोग उनसे पहले या उनके बाद किसी भी राष्ट्रपति ने नहीं किया। इसके तहत राष्ट्रपति किसी भी विधेयक को अनिश्चितकाल तक के लिए पेंडिंग कर सकता है। इस दौरान जेल सिंह ने हर संभव कोशिश की कि वो राजीव गांधी की सरकार को गिरा दें या बर्खास्त कर दें परंतु वो ऐसा कर नहीं पाए।
आतंकवादियों को पनाह देने का आरोप
एक दिन संसद में कांग्रेस के सांसद ने उन पर यह आरोप तक लगा दिया कि वो राष्ट्रपति भवन में आतंकवादियों को पनाह दे रहे हैं। भारत के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर ना तो इससे पहले और ना ही इसके बाद कभी किसी भी अपराधी को संरक्षण देने का आरोप लगा है। तमाम विवादों के बावजूद 25 जुलाई, 1987 तक अपने पद पर रहकर उन्होंने कार्यकाल पूरा किया और फिर राजनीति से सन्यास ले लिया। बाद में 25 दिसम्बर 1994 को एक रोड एक्सीडेंट में वो गंभीर रूप से घायल हुए एवं इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।