नई दिल्ली। भारत के नियंत्रक एवं महा लेखापरिक्षक (कैग) ने कहा है कि भारत के पास 10 दिन तक जंग लड़ने लायक गोला-बारूद भी नहीं है। इससे पहले 2015 में कैग ने कहा था कि भारत का गोला-बारूद भंडार खत्म हो रहा है। उसके पास मात्र 20 दिन तक जंग लड़ने लायक गोला-बारूद है। सवाल यह है कि जब 2015 में ही कैग ने चेतावनी दे दी थी तो फिर 2017 तक गोला-बारूद के भंडार भर क्यों नहीं लिए गए, जबकि भारत में जब से मोदी सरकार सत्तारूढ़ हुई है पड़ौसियों के युद्ध की धमकियां आम हो गईं हैं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय सेना के पास गोला-बारूद की इस कमी के लिए आयुध कारखाना बोर्ड को जिम्मेदार ठहराया है। लेकिन राजनीति और व्यवस्था के जानकर इस किल्लत के लिए कई दूसरे कारक माने जा रहे हैं।
2015 से अब तक कोई सुधार नहीं हुआ
इस रिपोर्ट में कैग ने कहा है कि वर्ष 2015 में केंद्रीय लेखापरिक्षक की तरफ से इस बारे में चिंता जताए जाने और रक्षा तैयारियों पर उच्च स्तरीय रिपोर्ट बनाए जाने के बावजूद आयुद्ध कारखानों के काम करने के तरीके में कोई सुधार नहीं देखा गया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया कि गोलाबारूद की निर्माण और सप्लाई क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों ही मामलों में खराब रहा।
मोदी का मेक इन इंडिया बना रोड़ा
रक्षा खरीद में रुकावट के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेक इन इंडिया पहल पर जोर को भी एक वजह माना गया। इस महत्वकांक्षी योजना के तहत पीएम मोदी ने साल 2014 में हथियारों और गोला-बारूद का आयात कम करते हुए भारत में इनका निर्माण बढ़ाने की घोषणा की थी।प्रधानमंत्री की इस पहल को सराहा तो खूब गया, लेकिन काम कुछ नहीं हुआ। भंडार में जो गोला बारूद भरा था वो भी खर्च होता जा रहा है। कैग ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात पर हैरानी जताई कि सैन्य मुख्यालय की तरफ से वर्ष 2009-13 में ही शुरू की गई खरीद कोशिशें जनवरी 2017 तक अटकी पड़ी थीं।
अच्छे गोदाम ही नहीं है
भारतीय सेना दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना है, जिसमें 13 लाख से ज्यादा सैनिक हैं। सैनिकों की इतनी बड़ी संख्या की वजह से हथियारों और गोलाबारूद का स्टॉक बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। वहीं सैन्य प्रतिष्ठानों में बड़ी मात्रा में गोला-बारूद के रखरखाव की भी समस्या होती है। आम तौर पर गोलियों और गोलों को अच्छी तरह से रखा जाए, तो वह दशकों तक सही रहते हैं लेकिन बड़ी मात्रा में गोला-बारूद स्टोर करके रखने से इतनी गुणवत्ता खराब होने लगती है और इस्तेमाल के वक्त समस्या होती है, लेकिन यह समस्या तो हमेशा से रही है। ताजा हालात बिगड़ने के लिए इसे दोष नहीं दिया जा सकता।
बजट आवंटित नहीं होता
आयुद्ध कारखानों की कार्यप्रणाली के अलावा देश के अंदर ही गोलाबारूद बनाने या फिर बाहर से आयात करने के लिए समय से फंड जारी नहीं होने की भी एक समस्या रहती है। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि लालफीताशाही और नौकरशाही की पुरातन प्रथाओं की वजह से साल दर साल रक्षा क्षेत्र के लिए बाधा खड़ी होती रही है। वहीं एक रिपोर्ट के मुताबिक, इसी लालफीताशाही की वजह से साल 2008 और 2013 के बीच लक्षित सीमा का महज 20 फीसदी गोला-बारूद ही आयात हो पाया। हालांकि यह भी हमेशा से चली आ रही झांझावत है। ताजा हालात क्यों बिगड़े इसके लिए इसे भी पूरा दोष नहीं दिया जा सकता।
सबसे बड़ा हथियार आयातक, खर्च फिर भी कम
यहां एक और बात गौर करने वाली है कि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रीसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) के मुताबिक, भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है। साल 2012 से 2016 के बीच दुनिया भर में हुए हथियारों के कुल आयात का 13 फीसदी हिस्सा भारत ने किया। हालांकि रणनीतिक विशेषज्ञ इयान ब्रेमर ने हाल ही कहा कि भारत उन चुनिंदा देशों में है, जो रक्षा तैयारियों के मुकाबले बुनियादी ढांचे पर ज्यादा खर्च करता है।