
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि संविधान में महिलाओं को समान अधिकार और पहचान के साथ गरिमापूर्ण जीने का अधिकार दिया गया है। ऐसे में किसी रेप पीड़ित महिला के खिलाफ पद पर बैठा कोई व्यक्ति अगर बयानबाजी करता है, तो उसके गरिमापूर्ण जीवन को ठेस पहुंचती है। कोर्ट ने कहा कि यहां मामला सिर्फ किसी के बोलने की आजादी के अधिकार का नहीं, बल्कि पीड़िता के फ्री एंड फेयर ट्रॉयल के अधिकार का भी है। अगर आरोपी ये कहता है कि उसे साजिश के तहत फंसाया गया, तो बात दूसरी है लेकिन कोई डीजीपी कहता है कि पीड़िता झूठी है तो पुलिस मामले की क्या जांच करेगी?
पिछले 15 दिसंबर को बुलंदशहर गैंगरेप मामले में यूपी के मंत्री आजम खान के पछतावे वाले माफीनामे को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। माफीनामे में रिमोर्स यानि पछतावा शब्द का इस्तेमाल किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये बिना शर्त माफीनामा से भी ऊपर का माफीनामा है।
उसके पहले की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामा को सुप्रीम कोर्ट ने बिना शर्त माफीनामा स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने आजम खान को निर्देश दिया था कि वे नया हलफनामा दायर करें। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद आजम खान सुप्रीम कोर्ट में अपने बयान को लेकर बिना शर्त माफी मांगने को तैयार हुए थे। इस मामले में एमिकस क्युरी फाली एस नरीमन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को उन मंत्रियों के व्यवहार और कर्तव्यों पर एक दिशानिर्देश जारी करना चाहिए जो किसी भी तरह का सार्वजनिक बयान दे देते हैं।