राज्यपाल का आफिस और मुख्य न्यायाधीश की संपत्ति भी RTI में आना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्ति का कार्यालय सूचना के अधिकार (आरटीआइ) कानून के तहत क्यों नहीं आ सकता। गुरुवार को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की पीठ ने केंद्र की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सवाल किया। याचिका में 2011 के बांबे हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने 2007 में गोवा की राजनीतिक स्थिति को लेकर राष्ट्रपति को भेजी गई राज्यपाल की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष मनोहर पार्रीकर ने आरटीआइ के तहत यह जानकारी मांगी थी।

केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने शीर्ष अदालत से कहा कि ऐसी ही याचिका कोर्ट लंबित है जिसे मौजूदा याचिका के साथ जोड़ दिया जाए। याचिका में देश के मुख्य न्यायाधीश की संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने की मांग है जिसे संविधान पीठ के पास भेजा गया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की संपत्ति से जुड़ी सूचना को भी परदे नहीं रखा जाना चाहिए। उसने कहा कि मौजूदा याचिका को पूर्व की याचिका के साथ जोड़ने के लिए याचिकाकर्ता को मुख्य न्यायाधीश के पास जाना होगा। कोर्ट अब इस मामले अगस्त के तीसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा।

इससे पहले इस मामले में हस्तक्षेपकर्ता की तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि राज्यपाल की रिपोर्ट को आरटीआइ कानून के दायरे में लाना चाहिए। राज्यपाल के प्रधान सूचना अधिकारी (पीआइओ) ने पर्रीकर के आवेदन को खारिज कर जानकारी देने से मना कर दिया था।

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