
मामले के अनुसार अपर सचिव पहले से ही विवाहित हैं और उनकी लिव इन पार्टनर भी पहले पति से तलाक लिए बगैर उनके साथ रहती थी। दोनों के बीच विवाद उत्पन्न होने पर महिला ने निचली अदालत में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत लिव इन पार्टनर से भरण पोषण राशि दिलाए जाने की याचिका दायर की थी। निचली अदालत ने याचिका मंजूर कर अंतरिम आदेश में पांच हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने के आदेश दिए थे।
निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला ने राशि को बढ़ा कर पच्चीस हजार रुपए प्रतिमाह दिए जाने जबकि अपर सचिव ने याचिका को निरस्त किए जाने की प्रार्थना करते हुए अपर जिला अदालत में अपील दायर की थी। ADJ ने दोनों के पहले से ही विवाहित होने और पूर्व पति-पत्नी से तलाक नहीं होने की वजह से लिव इन में रहने वाली पार्टनर की भरण पोषण राशि दिलाए जाने की याचिका को निरस्त कर दिया। जज ने अपने आदेश में उल्लेखित किया है कि भले ही यह दोनों साथ में रहने के दस्तावेज पेश कर रहे हों परंतु सारहीन होने से अपील निरस्त की जाती है।