नई दिल्ली। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह को सजा मिलने के बाद कुछ चाटुकारों ने इसका क्रेडिट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देना शुरू कर दिया था। वो बार बार बता रहे थे कि अटलजी के समय मामला दर्ज हुआ और मोदी के समय सजा सुनाई गई लेकिन अब एक नया खुलासा हुआ है। इन दोनों के बीच पीएम मनमोहन सिंह के कार्यकाल में सीबीआई जांच हुई। यदि यह निष्पक्ष जांच नहीं हो पाती तो केस कब का क्लोज हो गया होता। पंजाब एवं हरियाणा के नेताओं का काफी दवाब था फिर भी पीएम मनमोहन सिंह ने सीबीआई को फ्री हेंड दिया और कानून के अनुसार कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए है। ये सबकुछ तब जबकि मनमोहन सिंह खुद पंजाब से आते हैं। इससे पहले यह खुलासा भी हो चुका है कि हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भाजपा नेताओं ने बाबा गुरमीत सिंह से गोपनीय मुलाकात की एवं अपने अनुयायियों से वोट दिलाने के बदले इस मामले को खत्म करने का वादा किया था। बाबा राम रहीम ने ना केवल हरियाणा बल्कि यूपी चुनाव में भी भाजपा को सपोर्ट किया। भाजपा नेताओं ने बाबा का आभार भी जताया था।
इस मामले की पूरी जांच सीबीआई के रिटायर डीआईजी एम. नारायणन ने की है। अब नारायणन का कहना है कि तब राम रहीम के खिलाफ जांच नहीं करने को लेकर बहुत दबाव था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस सियासी दबाव को नजरंदाज करते हुए जांच जारी रखने को कहा। सीबीआई की निष्पक्ष जांच का ही नतीजा है कि आज राम रहीम सलाखों के पीछे है।
बकौल नारायणन, तब प्रधानमंत्री ने सीबीआई को फ्री हैंड दिया था। वे पूरी तरह जांच एजेंसी के साथ थे। उनके हमें स्पष्ट निर्देश थे कि हम कानून के अनुसार चलें। उन्होंने दोनों साध्वियों के लिखित बयान पढ़ने के बाद कहा कि पंजाब और हरियाणा के सांसदों के दबाव में आने की कोई जरूरत नहीं। नारायणन ने यह भी कहा कि दोनों राज्यों के सांसदों से इतना ज्यादा दबाव था कि मनमोहन सिंह ने तब के सीबीआई चीफ विजय शंकर को बुलाया और पूरे मामले की जानकारी ली। उसके बाद से सीबीआई ने अपना काम बिना किसी दबाव के काम किया।
नारायणन ने बताया कि केस में सबसे बड़ी चुनौती आरोपी साध्वी को तलाशना था, क्योंकि तब उसका कोई अता-पता नहीं था। कड़ी मश्ककत के बाद उन्होंने 10 साध्वियों का पता लगाया, लेकिन उनमें से दो ही बोलने को राजी हुईं। हालांकि ये दो गवाहियां ही केस में सबसे अहम कड़ी साबित हुईं।