इलाहाबाद। बाबा रामदेव ने गौतम बुद्ध नगर में पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड का कारखाना लगाने के लिए पट्टे पर जमीन हासिल कर ली और फिर उसमें लगे हजारों पेड़ कटवा दिए। हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लेते हुए आवंटित भूमि की प्रकृति में परिवर्तन पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने सचिव औद्योगिक विकास से इस मामले में हलफनामा मांगते हुए पूछा है कि पतंजलि आयुर्वेद को पट्टे की जमीन कैसे दे दी गई? कोर्ट ने यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण के सीईओ से भी जवाब मांगा है और पूछा है कि जमीन पर लगे हरे पेड़ किस कानून के तहत नष्ट किए गए।
कोर्ट ने पेड़ काटने के समय मौजूद अधिकारियों की जानकारी भी मांगी है। इसके साथ ही डीएम गौतमबुद्ध नगर को पेड़ों की स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 4 सितंबर को होगी। औसाफ व 13 अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जस्टिस तरुण अग्रवाल और जस्टिस अशोक कुमार की खंडपीठ ने दिया है। हाई कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार के वकील से पूछा था कि, किसके आदेश पर हरे पेड़ों पर बुलडोजर चलाए गए।
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का उदाहरण देते हुए कहा था कि व्यक्तिगत क्षति की भरपाई तो की जा सकती है, लेकिन समाज को पहुंचने वाली क्षति की भरपाई क्या मुआवजा देकर की जा सकती है। कोर्ट ने सरकार से 30 अगस्त को यह जानकारी उपलब्ध कराने को कहा था। लेकिन बुधवार को भी इस मामले में स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा सकी। जिसके बाद कोर्ट से सख्ती अपनाई।
यह है मामला
औसाफ व 13 अन्य की याचिका में कहा गया है कि 200 बीघा जमीन उन्हें 30 साल के लिए पौधरोपण करने के लिए पट्टे पर दी गई है। पट्टा अभी निरस्त नहीं हुआ है। इसको लेकर सिविल वाद भी चल रहा है। याचिका में कहा गया है कि यमुना एक्सप्रेस वे अथॉरिटी ने 3 जून 2017 को याचियों की जमीन के अलावा कुल 4500 एकड़ जमीन बाबा रामदेव के पतंजलि योग संस्थान को फैक्ट्री स्थापित करने के लिए दी है। लेकिन इस जमीन पर खड़े हजारों हरे पेड़ बिना पर्यावरण विभाग की अनुमति लिए काटे जा रहे हैं। अथॉरिटी की ओर से कहा गया था कि अथॉरिटी ने पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी है। इस पर नाराज कोर्ट ने पूछा था कि फिर किसके आदेश पर पेड़ों पर बुलडोजर चलाए गए।