शासकीय कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण: दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला

नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) के उस मेमोरेंडम को रद्द कर दिया है जिसके तहत अनुसूचित जाति/जनजाति को 1997 के बाद भी प्रोन्नति में आरक्षण का फायदा देने के नियम को जारी रखने का निर्देश दिया गया था। ऐक्टिंग चीफ जस्टिस और जस्टिस सी. हरिशंकर की डिविजन बेंच ने डीओपीटी के 13 अगस्त, 1997 के मेमोरेंडम को कानून के विरुद्ध बताते हुए यह फैसला सुनाया। बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि इंदिरा साहनी या नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट के जो भी फैसले रहे, उन सभी से साफ है कि एससी/एसटी को पहली नजर में प्रतिनिधित्व का आंकड़ा तैयार किए बिना या अनुचित प्रतिनिधित्व के आधार पर पिछड़े के तौर पर देखना गलत है। इससे संविधान के अनुच्छेद 16(1) और 335 का उल्लंघन हो रहा है और इसी वजह से उक्त मेमारेंडम रद्द होने लायक है।

इसके अलावा अदालत ने केंद्र व अन्य को इस मेमोरेंडम के आधार पर एससी/एसटी कैटिगरी के लोगों को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने पर भी रोक लगा दी है। अदालत ने हालांकि याचिकाकर्ता की वह मांग ठुकरा दी जिसमें उसने इस मेमोरेंडम के आधार पर हुए प्रमोशन को रद्द करने के साथ उन पदों पर जनरल कैटिगरी के लोगों को प्रमोशन का फायदा दिलाए जाने के लिए कहा था। बेंच ने कहा कि ऐसा आदेश जारी करना संभव नहीं है, क्योंकि प्रमोशन कई तथ्यों पर निर्भर करता है जिसमें वरिष्ठता, पात्रता शर्तें, पदों की उपलब्धता, कोटा आदि शामिल हैं। अदालत ने हालांकि यह राहत जरूर दी है कि संबंधित मेमोरेंडम के तहत अगर किसी एससी या एसटी कैटिगरी के प्रमोशन के लिए पोस्ट हो तो उस पोस्ट को जनरल कैटिगरी के लोगों के लिए भी ओपन रखा जाए।

मामले में अखिल भारतीय समानता मंच ने अन्य लोगों के साथ मिलकर डीओपीटी के 13 अगस्त 1997 के मेमोरेंडम को चुनौती दी थी। इसके तहत विभाग ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में एससी/एसटी के प्रमोशन में रिजर्वेशन के लाभ को 16 नवंबर 1992 से अगले पांच साल तक बरकरार रखा है और सभी मंत्रालय व अन्य पब्लिक सेक्टर और वैधानिक निकाय 1997 के बाद भी जारी रख सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!